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New arjun kapoor and malaika arora age diff Status, Photo, Video

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pushpa 2 roll Allu Arjun

117 View

Unsplash love i mansurchak ©Akash Kumar

#lovelife #SAD  Unsplash love i mansurchak

©Akash Kumar

#lovelife my age yooo

9 Love

उम्र बढ़ती हैं तो अपनी पुरानी photo अपने बच्चो की photo लगती हैं हाँ ना 😂👆🏻👆🏻👆🏻👆🏻देखो गौर से कभी जवानी कभी बुढ़ापा....... ©puja udeshi

#pujaudeshi #Age  उम्र  बढ़ती हैं तो अपनी पुरानी photo 
अपने बच्चो की photo लगती हैं 
हाँ ना 😂👆🏻👆🏻👆🏻👆🏻देखो गौर से 
कभी जवानी कभी बुढ़ापा.......

©puja udeshi

#Age #pujaudeshi

22 Love

दिखता शून्य, समर में भरा हुआ अवचेतन है मन, कुछ डरा हुआ किससे युद्ध करूं मै पार्थ तुम सुलझाओ, मन का स्वार्थ। रणभेरी जो हमने आज उकेरी कल अपने ही मिटते होंगे बहेंगे अश्रु और होगी लाशों की ढेरी। धनुष धर्म की ओर उठा है है नजर तो, फिर भी अपनों ने ही फेरी। लहू बहेगा, श्वेत वस्त्र का होगा मातम क्रंदन मय होगी हर रात घनेरी। मुक्त करो, है अर्ज दास की पाप प्रलय सा हर पन्नों मे होगा सर्वस्व नाश में होगी न देरी। Contd....... ©Aavran

#मोहब्बत #इनदिनों #जिंदगी #LifeIsBeautiful #आवरण  दिखता शून्य, समर में भरा हुआ
अवचेतन है मन, कुछ डरा हुआ
किससे युद्ध करूं मै पार्थ
तुम सुलझाओ, मन का स्वार्थ।
रणभेरी जो हमने आज उकेरी
कल अपने ही मिटते होंगे
बहेंगे अश्रु और होगी लाशों की ढेरी। 
धनुष धर्म की ओर उठा है
है नजर तो, फिर भी अपनों ने ही फेरी। 
लहू बहेगा, श्वेत वस्त्र का होगा मातम
क्रंदन मय होगी हर रात घनेरी। 
मुक्त करो, है अर्ज दास की
पाप प्रलय सा हर पन्नों मे होगा 
सर्वस्व नाश में होगी न देरी।

Contd.......

©Aavran
#वीडियो

Pushpa 2 allu Arjun

144 View

कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था, दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था। धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन, सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन। व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया, भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया। मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ, किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ? पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना, पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना? जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए, आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए। "हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई, जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई। क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा, जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?" अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल, धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल। कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से, "जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है। हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो, धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो। यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है, तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है। ©Avinash Jha

#aeastheticthoughtes #संशय #Mahabharat #Krishna  कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था,
दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था।
धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन,
सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन।

व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया,
भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया।
मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ,
किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ?

पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना,
पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना?
जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए,
आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए।

"हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई,
जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई।
क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा,
जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?"

अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल,
धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल।
कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से,
"जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है।

हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो,
धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो।
यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है,
तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है।

©Avinash Jha
#Videos

pushpa 2 roll Allu Arjun

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Unsplash love i mansurchak ©Akash Kumar

#lovelife #SAD  Unsplash love i mansurchak

©Akash Kumar

#lovelife my age yooo

9 Love

उम्र बढ़ती हैं तो अपनी पुरानी photo अपने बच्चो की photo लगती हैं हाँ ना 😂👆🏻👆🏻👆🏻👆🏻देखो गौर से कभी जवानी कभी बुढ़ापा....... ©puja udeshi

#pujaudeshi #Age  उम्र  बढ़ती हैं तो अपनी पुरानी photo 
अपने बच्चो की photo लगती हैं 
हाँ ना 😂👆🏻👆🏻👆🏻👆🏻देखो गौर से 
कभी जवानी कभी बुढ़ापा.......

©puja udeshi

#Age #pujaudeshi

22 Love

दिखता शून्य, समर में भरा हुआ अवचेतन है मन, कुछ डरा हुआ किससे युद्ध करूं मै पार्थ तुम सुलझाओ, मन का स्वार्थ। रणभेरी जो हमने आज उकेरी कल अपने ही मिटते होंगे बहेंगे अश्रु और होगी लाशों की ढेरी। धनुष धर्म की ओर उठा है है नजर तो, फिर भी अपनों ने ही फेरी। लहू बहेगा, श्वेत वस्त्र का होगा मातम क्रंदन मय होगी हर रात घनेरी। मुक्त करो, है अर्ज दास की पाप प्रलय सा हर पन्नों मे होगा सर्वस्व नाश में होगी न देरी। Contd....... ©Aavran

#मोहब्बत #इनदिनों #जिंदगी #LifeIsBeautiful #आवरण  दिखता शून्य, समर में भरा हुआ
अवचेतन है मन, कुछ डरा हुआ
किससे युद्ध करूं मै पार्थ
तुम सुलझाओ, मन का स्वार्थ।
रणभेरी जो हमने आज उकेरी
कल अपने ही मिटते होंगे
बहेंगे अश्रु और होगी लाशों की ढेरी। 
धनुष धर्म की ओर उठा है
है नजर तो, फिर भी अपनों ने ही फेरी। 
लहू बहेगा, श्वेत वस्त्र का होगा मातम
क्रंदन मय होगी हर रात घनेरी। 
मुक्त करो, है अर्ज दास की
पाप प्रलय सा हर पन्नों मे होगा 
सर्वस्व नाश में होगी न देरी।

Contd.......

©Aavran
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Pushpa 2 allu Arjun

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कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था, दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था। धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन, सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन। व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया, भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया। मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ, किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ? पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना, पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना? जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए, आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए। "हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई, जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई। क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा, जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?" अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल, धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल। कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से, "जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है। हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो, धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो। यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है, तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है। ©Avinash Jha

#aeastheticthoughtes #संशय #Mahabharat #Krishna  कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था,
दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था।
धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन,
सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन।

व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया,
भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया।
मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ,
किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ?

पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना,
पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना?
जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए,
आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए।

"हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई,
जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई।
क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा,
जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?"

अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल,
धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल।
कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से,
"जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है।

हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो,
धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो।
यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है,
तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है।

©Avinash Jha
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