दिखता शून्य, समर में भरा हुआ
अवचेतन है मन, कुछ डरा हुआ
किससे युद्ध करूं मै पार्थ
तुम सुलझाओ, मन का स्वार्थ।
रणभेरी जो हमने आज उकेरी
कल अपने ही मिटते होंगे
बहेंगे अश्रु और होगी लाशों की ढेरी।
धनुष धर्म की ओर उठा है
है नजर तो, फिर भी अपनों ने ही फेरी।
लहू बहेगा, श्वेत वस्त्र का होगा मातम
क्रंदन मय होगी हर रात घनेरी।
मुक्त करो, है अर्ज दास की
पाप प्रलय सा हर पन्नों मे होगा
सर्वस्व नाश में होगी न देरी।
Contd.......
©Aavran
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