Priya Kumari Niharika

Priya Kumari Niharika Lives in Durgapur, West Bengal, India

काशी पुण्य की नगरी और सकल विश्व का पारस है मन्त्रमुग्ध कर लेता सबको ये रंगरेज़ बनारस है 💗🇮🇳🌅⛵🍯🦚🐦🦜💐🥰

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White When India got its independence, 78 years ago, Nehru said- At the stroke of the midnight hour, when the world sleeps, India will awake to life and freedom. 78 years later, At the stroke of midnight hour, when the world , Kolkata IS AWAKE TO MOBS ATTACKING MEDICAL COLLEGE. They came by trucks. They destroyed crucial evidence. They attacked Doctors, Students, tried to break into girls hostel. And now they're heading for other medical colleges. This is India, this is your country. 78 years after Independence. ©Priya Kumari Niharika

#sad_shayari  White When India got its independence, 78 years ago, Nehru said-


At the stroke of the midnight hour, when the world sleeps,
 India will awake to life and freedom.

78 years later, At the stroke of midnight hour,
 when the world , Kolkata IS AWAKE TO MOBS
 ATTACKING MEDICAL COLLEGE. They came by trucks.
 They destroyed crucial evidence. They attacked Doctors, Students, tried to break into girls hostel. 
And now they're heading for other medical colleges. 
This is India, this is your country. 
78 years after Independence.

©Priya Kumari Niharika

#sad_shayari

11 Love

White बांट दो सबको, संतुलन बना रहेगा पर संतुलन तो बराबरी हुई ना? जिसमें समन्वय सहयोग और समानता हो , यदि सामानता हुई तो ज्ञात होगा कभी? प्रजा कौन है,और राजा कौन? फर्क और हैसियत के बीच की पतली सी रेखा सबको ज्ञात होनी चाहिए कि तिलकधारी कभी झुकते नहीं, और क्षत्रिय भी कभी रुकते नहीं, व्यापारियों के बढ़ते प्यास ने बनाया जनता को एनीमिया का मरीज किसने निर्मित कि ये खाई, ऊंचे हैं स्वर्ण और शूद्र है नीच? स्वयं को उच्च गिनाने में व्यस्त है संसार, सुखन मोची ने कल ही बताया, धोबी से बड़ा है सर चमार दबाने और दबने से बचने के लिए, की जाती है चढ़ाई मिट्टी के टीलों पर, जिससे फिसलते मिट्टी के बड़े टुकड़े छोटे टुकड़ों को कुचलकर बढ़ना चाहते हैं आगे अभाव, असुरक्षा और अमानवीयता से बिलखते तड़पते जिस्मो के और कितने टुकड़े नोचें जाएंगे? जल जंगल जमीन से जुड़े हाशिये पर खड़े असभ्य लोग कब तक कहलाएंगे माओवादी? देश को स्वच्छ रखने वाले कब तक बने रहेंगे देश की गंदगी? कब मिलेगा इन्हें इनका हक और जीने के लिए जिंदगी? दलित आदिवासी कृषक,मजदूर और बेटियां व्यथित हैं,सभ्य समाज का ताना-बाना बुनने वाले लोगों की धारणा और व्यवहार से आतंकित है ये उसे दहशत से जिसकी आग बरसों पहले लगाई गई आधुनिक उदार विचार वाले सभ्य समाज.....के विचार तब तर्कसंगत नहीं लगते, जब अंतरजातीय विवाह के जिक्र मात्र से शुरू होता है आंतरिक द्वंद्व और बाहरी विवाद, तब यह विचार निष्पक्ष नहीं लगता जब अन्नदाता की भुखमरी उसकी मृत्यु का कारण बनती है, तब यह विचार प्रासंगिक नहीं लगते, जब गरीब मजदूर डेढ़ रुपए मजदूरी बढ़ाने के लिए देता है धरना और रोकना पड़ता है विरोध, मात्र 25 रुपए मासिक वृद्धि पर तब एक प्रश्न विचलित करता है, कि आखिर क्या मिलता होगा डेढ़ रुपए में तब यह विचार और चुभने लगता है,जब देश की प्रगति के नाम पर विस्थापित किए जाते हैं आदिवासी अपने ही घर से यह सोच तब हमें तड़पाती है जब स्त्रियों की राय न पूछी जाती है न समझी पद की प्रतिष्ठा के सिवाय सामान्य स्तर पर मानवीय सम्मान की दृष्टि से उसके अस्तित्व को आज भी प्राथमिकता नहीं मिली क्या इन श्रेणियों में विभाजित जन.... जन गण मन का जन नहीं? क्या सम्मान केवल उच्च वर्ग के लिए आरक्षित है? या है उसे पर इनका भी हक यह सबरी केवट का देश है तो गाली से इनका स्वागत क्यों? ये एकलव्य या कर्ण का देश है तो बोली से इनको आहत क्यों? जब जब ईश्वर भी अवतरित हुए, तो उच्च घराने चुन लिये अभिप्राय भला क्या समझूं मैं, भगवन भी के इनके सगे नहीं याचना नहीं तू रण करना, क्यों आखिर अब तक जगे नहीं अमानवता फैली हो, और तुम संतुलित रहे तो समझ लेना तो आतताई के पक्ष में हो ©Priya Kumari Niharika

#sad_shayari  White  बांट दो सबको,  संतुलन बना रहेगा
 पर संतुलन तो बराबरी हुई ना?
 जिसमें समन्वय सहयोग और समानता हो ,
 यदि सामानता हुई तो ज्ञात होगा कभी?
 प्रजा कौन है,और राजा कौन?
 फर्क और हैसियत के बीच की पतली सी रेखा
 सबको ज्ञात होनी चाहिए
 कि तिलकधारी कभी झुकते नहीं, 
और क्षत्रिय भी कभी रुकते नहीं,
 व्यापारियों के बढ़ते प्यास ने बनाया जनता को एनीमिया का मरीज
 किसने निर्मित कि ये खाई,  ऊंचे हैं स्वर्ण और शूद्र है नीच?
 स्वयं को उच्च गिनाने में व्यस्त है संसार,
 सुखन मोची ने कल ही बताया, धोबी से बड़ा है सर चमार 
 दबाने और दबने से बचने के लिए, की जाती है चढ़ाई
  मिट्टी के टीलों पर, जिससे फिसलते मिट्टी के बड़े टुकड़े
 छोटे टुकड़ों को कुचलकर बढ़ना चाहते हैं आगे 
 अभाव, असुरक्षा और अमानवीयता से बिलखते तड़पते जिस्मो के
 और कितने टुकड़े नोचें जाएंगे?
 जल जंगल जमीन से जुड़े हाशिये पर खड़े असभ्य लोग 
 कब तक कहलाएंगे माओवादी?
 देश को स्वच्छ रखने वाले कब तक बने रहेंगे देश की गंदगी?
 कब मिलेगा इन्हें इनका हक और जीने के लिए जिंदगी?
 दलित आदिवासी कृषक,मजदूर और बेटियां 
 व्यथित हैं,सभ्य समाज का ताना-बाना बुनने वाले लोगों की धारणा और व्यवहार से
 आतंकित है ये उसे दहशत से जिसकी आग बरसों पहले लगाई गई 
 आधुनिक उदार विचार वाले सभ्य समाज.....के विचार तब तर्कसंगत नहीं लगते,
 जब अंतरजातीय विवाह के जिक्र मात्र से शुरू होता है 
आंतरिक द्वंद्व और बाहरी विवाद,
 तब यह विचार निष्पक्ष नहीं लगता जब अन्नदाता की भुखमरी
उसकी मृत्यु का कारण बनती है,
 तब यह विचार प्रासंगिक नहीं लगते, जब गरीब मजदूर 
 डेढ़ रुपए मजदूरी बढ़ाने के लिए देता है धरना 
 और रोकना पड़ता है विरोध, मात्र 25 रुपए मासिक वृद्धि पर
तब एक प्रश्न विचलित करता है, कि आखिर क्या मिलता होगा डेढ़ रुपए में 
तब यह विचार और चुभने लगता है,जब देश की प्रगति के नाम पर 
 विस्थापित किए जाते हैं आदिवासी अपने ही घर से
 यह सोच तब हमें तड़पाती है जब स्त्रियों की राय न पूछी जाती है न समझी 
 पद की प्रतिष्ठा के सिवाय सामान्य स्तर पर 
मानवीय सम्मान की दृष्टि से उसके अस्तित्व को 
 आज भी प्राथमिकता नहीं मिली 
 क्या इन श्रेणियों में विभाजित जन.... जन गण मन का जन नहीं?
 क्या सम्मान केवल उच्च वर्ग के लिए आरक्षित है?
 या है उसे पर इनका भी हक 
 यह सबरी केवट का देश है तो गाली से इनका स्वागत क्यों?
 ये एकलव्य या कर्ण का देश है तो बोली से इनको आहत क्यों?
 जब जब ईश्वर भी अवतरित हुए, तो उच्च घराने चुन लिये 
 अभिप्राय भला क्या समझूं मैं, भगवन भी के इनके सगे नहीं 
 याचना नहीं तू रण करना, क्यों आखिर अब तक जगे नहीं 
 अमानवता फैली हो, और तुम संतुलित रहे 
 तो समझ लेना तो आतताई के पक्ष में हो

©Priya Kumari Niharika

White बांट दो सबको, संतुलन बना रहेगा पर संतुलन तो बराबरी हुई ना? जिसमें समन्वय सहयोग और समानता हो , यदि सामानता हुई तो ज्ञात होगा कभी? प्रजा कौन है,और राजा कौन? फर्क और हैसियत के बीच की पतली सी रेखा सबको ज्ञात होनी चाहिए कि तिलकधारी कभी झुकते नहीं, और क्षत्रिय भी कभी रुकते नहीं, व्यापारियों के बढ़ते प्यास ने बनाया जनता को एनीमिया का मरीज किसने निर्मित कि ये खाई, ऊंचे हैं स्वर्ण और शूद्र है नीच? स्वयं को उच्च गिनाने में व्यस्त है संसार, सुखन मोची ने कल ही बताया, धोबी से बड़ा है सर चमार दबाने और दबने से बचने के लिए, की जाती है चढ़ाई मिट्टी के टीलों पर, जिससे फिसलते मिट्टी के बड़े टुकड़े छोटे टुकड़ों को कुचलकर बढ़ना चाहते हैं आगे अभाव, असुरक्षा और अमानवीयता से बिलखते तड़पते जिस्मो के और कितने टुकड़े नोचें जाएंगे? जल जंगल जमीन से जुड़े हाशिये पर खड़े असभ्य लोग कब तक कहलाएंगे माओवादी? देश को स्वच्छ रखने वाले कब तक बने रहेंगे देश की गंदगी? कब मिलेगा इन्हें इनका हक और जीने के लिए जिंदगी? दलित आदिवासी कृषक,मजदूर और बेटियां व्यथित हैं,सभ्य समाज का ताना-बाना बुनने वाले लोगों की धारणा और व्यवहार से आतंकित है ये उसे दहशत से जिसकी आग बरसों पहले लगाई गई आधुनिक उदार विचार वाले सभ्य समाज के विचार तब तर्कसंगत नहीं लगते, जब अंतरजातीय विवाह के जिक्र मात्र से शुरू होता है आंतरिक द्वंद्व और बाहरी विवाद, तब यह विचार निष्पक्ष नहीं लगता जब अन्नदाता की भुखमरी उसकी मृत्यु का कारण बनती है, तब यह विचार प्रासंगिक नहीं लगते, जब गरीब मजदूर डेढ़ रुपए मजदूरी बढ़ाने के लिए देता है धरना और रोकना पड़ता है विरोध, मात्र 25 रुपए मासिक वृद्धि पर तब एक प्रश्न विचलित करता है, कि आखिर क्या मिलता होगा डेढ़ रुपए में यह विचार तक चुभने लगता है जब देश की प्रगति के नाम पर विस्थापित किए जाते हैं आदिवासी अपने ही घर से यह सोच तब तड़पाती है जब स्त्रियों की राय न पूछी जाती है न समझी पद की प्रतिष्ठा के सिवाय सामान्य स्तर पर मानवीय सम्मान की दृष्टि से उसके अस्तित्व को आज भी प्राथमिकता नहीं मिली क्या इन श्रेणियों में विभाजित जन.... जन गण मन का जन नहीं? क्या सम्मान केवल उच्च वर्ग के लिए आरक्षित है? या है उसे पर इनका भी हक यह सबरी केवट का देश है तो गली से इनका स्वागत क्यों? ये एकलव्य या कर्ण का देश है तो बोली से इनको आहत क्यों? जब जब ईश्वर भी अवतरित हुए, तो उच्च घराने चुन लिये अभिप्राय भला क्या समझूं मैं, भगवन भी के इनके सगे नहीं याचना नहीं तू रण करना, क्यों आखिर अब तक जगे नहीं अमानवता फैली हो, और तुम संतुलित रहे तो समझ लेना तो आतताई के पक्ष में हो ©Priya Kumari Niharika

 White बांट दो सबको,  संतुलन बना रहेगा
 पर संतुलन तो बराबरी हुई ना?
 जिसमें समन्वय सहयोग और समानता हो ,
 यदि सामानता हुई तो ज्ञात होगा कभी?
 प्रजा कौन है,और राजा कौन?
 फर्क और हैसियत के बीच की पतली सी रेखा
 सबको ज्ञात होनी चाहिए
 कि तिलकधारी कभी झुकते नहीं, 
और क्षत्रिय भी कभी रुकते नहीं,
 व्यापारियों के बढ़ते प्यास ने बनाया जनता को एनीमिया का मरीज
 किसने निर्मित कि ये खाई,  ऊंचे हैं स्वर्ण और शूद्र है नीच?
 स्वयं को उच्च गिनाने में व्यस्त है संसार,
 सुखन मोची ने कल ही बताया, धोबी से बड़ा है सर चमार 
 दबाने और दबने से बचने के लिए, की जाती है चढ़ाई
  मिट्टी के टीलों पर, जिससे फिसलते मिट्टी के बड़े टुकड़े
 छोटे टुकड़ों को कुचलकर बढ़ना चाहते हैं आगे 
 अभाव, असुरक्षा और अमानवीयता से बिलखते तड़पते जिस्मो के
 और कितने टुकड़े नोचें जाएंगे?
 जल जंगल जमीन से जुड़े हाशिये पर खड़े असभ्य लोग 
 कब तक कहलाएंगे माओवादी?
 देश को स्वच्छ रखने वाले कब तक बने रहेंगे देश की गंदगी?
 कब मिलेगा इन्हें इनका हक और जीने के लिए जिंदगी?
 दलित आदिवासी कृषक,मजदूर और बेटियां 
 व्यथित हैं,सभ्य समाज का ताना-बाना बुनने वाले लोगों की धारणा और व्यवहार से
 आतंकित है ये उसे दहशत से जिसकी आग बरसों पहले लगाई गई 
 आधुनिक उदार विचार वाले सभ्य समाज के विचार तब तर्कसंगत नहीं लगते,
 जब अंतरजातीय विवाह के जिक्र मात्र से शुरू होता है 
आंतरिक द्वंद्व और बाहरी विवाद,
 तब यह विचार निष्पक्ष नहीं लगता जब अन्नदाता की भुखमरी
उसकी मृत्यु का कारण बनती है,
 तब यह विचार प्रासंगिक नहीं लगते, जब गरीब मजदूर 
 डेढ़ रुपए मजदूरी बढ़ाने के लिए देता है धरना 
 और रोकना पड़ता है विरोध, मात्र 25 रुपए मासिक वृद्धि पर
तब एक प्रश्न विचलित करता है, कि आखिर क्या मिलता होगा डेढ़ रुपए में 
 यह विचार तक चुभने लगता है जब देश की प्रगति के नाम पर 
 विस्थापित किए जाते हैं आदिवासी अपने ही घर से
 यह सोच तब तड़पाती है जब स्त्रियों की राय न पूछी जाती है न समझी 
 पद की प्रतिष्ठा के सिवाय सामान्य स्तर पर 
मानवीय सम्मान की दृष्टि से उसके अस्तित्व को 
 आज भी प्राथमिकता नहीं मिली 
 क्या इन श्रेणियों में विभाजित जन.... जन गण मन का जन नहीं?
 क्या सम्मान केवल उच्च वर्ग के लिए आरक्षित है?
 या है उसे पर इनका भी हक 
 यह सबरी केवट का देश है तो गली से इनका स्वागत क्यों?
 ये एकलव्य या कर्ण का देश है तो बोली से इनको आहत क्यों?
 जब जब ईश्वर भी अवतरित हुए, तो उच्च घराने चुन लिये 
 अभिप्राय भला क्या समझूं मैं, भगवन भी के इनके सगे नहीं 
 याचना नहीं तू रण करना, क्यों आखिर अब तक जगे नहीं 
 अमानवता फैली हो, और तुम संतुलित रहे 
 तो समझ लेना तो आतताई के पक्ष में हो

©Priya Kumari Niharika

White मानस के दरख्त पर, विचार के हरे पत्ते अक्सर मुस्कुराते, खिलखिलाते,झूमते मगर मौसम के थपेड़ों से, खो देते है वो रंग अपना चढ़ता पित वर्ण उनपर,सिकुड़कर सूख जाते वे बिखर जाते जमीं पर फिर,आहिस्ता - आहिस्ता और जरा देर तक फिर वे, तकते उन दरख्तों को जिसे थाम कर गुजारे है, ग्रीष्म ,शरद और बसंत फिर पतझड़ के झरोखों से, विस्थापित हुए वे सब स्वतंत्र हो रहे हो ज्यों , हालात और संघर्ष के द्वंद से मुक्त होता है त्यों अक्षर, कविता के सभी छंद से सूखने लगते है ज़ब,विचार के हरे पत्ते और चेतनाशून्य होती है मस्तिष्क, तो धुंधली पड़ जाती है नयन की, पुतलियां अक्सर कलम थम जाती पन्नों पर, लिखा जिसने कभी जीवन नयन लाचार नम होते , हुआ करती जुवा भी मौन मन के आईने की किरचियां बिखरी पड़ी भीतर उन्हीं टुकड़ों में अब मौजूद बस रहता है सन्नाटा तो उर के अतलस्पर्श तक, छा जाती निरवता क्यूंकि अभिव्यक्ति के अभाव में भावावेग की सता नियंत्रण तोड़कर,अक्सर दृगजल बन बरसती है कविता सिमटी न पन्नों में,न स्याही से उभर पायी न बंध पायी वो छंदों में, न अलंकारों से सवर पायी गढ़ी गयी ये उर के भीतर, मढ़ी गयी भावनाओं से अपरिमित स्वच्छंद रूप में,सवरी है कल्पनाओं से की हर बात कहने भर से जाहिर हो न पाये गर तो नेत्रों में छिपे अज्ञात से भी, बात होती है यदि नीरवता भी चीत्कार भरने का, बना ले मन तभी निशब्द की हर थाह से, मुलाकात होती है तभी निशब्द की हर थाह से मुलाक़ात होती है ©Priya Kumari Niharika

#sad_shayari #treanding #me  White मानस के दरख्त पर, विचार के हरे पत्ते
 अक्सर मुस्कुराते, खिलखिलाते,झूमते मगर
 मौसम के थपेड़ों से, खो देते है वो रंग अपना 
 चढ़ता पित वर्ण उनपर,सिकुड़कर सूख जाते वे 
 बिखर जाते जमीं पर फिर,आहिस्ता - आहिस्ता 
और जरा देर तक फिर वे, तकते  उन दरख्तों को
 जिसे थाम कर गुजारे है, ग्रीष्म ,शरद और बसंत 
 फिर पतझड़ के झरोखों से, विस्थापित हुए वे सब 
 स्वतंत्र हो रहे हो ज्यों , हालात और संघर्ष के द्वंद से 
 मुक्त होता है  त्यों अक्षर, कविता के सभी छंद से
  सूखने लगते है ज़ब,विचार के हरे पत्ते
 और चेतनाशून्य होती है मस्तिष्क,
 तो धुंधली पड़ जाती है नयन की, पुतलियां अक्सर 
 कलम थम जाती पन्नों पर, लिखा जिसने कभी जीवन 
 नयन लाचार नम होते , हुआ करती जुवा भी मौन 

 मन के आईने की किरचियां बिखरी पड़ी भीतर
 उन्हीं टुकड़ों में अब मौजूद बस रहता है सन्नाटा
तो उर के अतलस्पर्श तक, छा जाती निरवता 
क्यूंकि अभिव्यक्ति के अभाव में भावावेग की सता 
 नियंत्रण तोड़कर,अक्सर दृगजल बन बरसती है 
 कविता सिमटी न पन्नों में,न स्याही से उभर पायी 
न बंध पायी वो छंदों में, न अलंकारों से सवर पायी 
गढ़ी गयी ये उर के भीतर, मढ़ी गयी भावनाओं से 
 अपरिमित स्वच्छंद रूप में,सवरी है कल्पनाओं से 
की हर बात कहने भर से जाहिर हो न पाये गर
 तो नेत्रों में छिपे अज्ञात से भी, बात होती है 
 यदि नीरवता भी चीत्कार भरने का, बना ले मन 
तभी निशब्द की हर थाह से, मुलाकात होती है
तभी निशब्द की हर थाह से मुलाक़ात होती है

©Priya Kumari Niharika

#sad_shayari #treanding #Nojoto #me

16 Love

शीर्षक: ढलती उम्र और संतान उन हथेलियों से उंगलियां छूटना चाहती है पूरी ताकत लगाकर जिन्हें थाम कर कभी हुई थी गलियों से मुलाकात जिनकी रीढ़ अब लगभग झुकी है उम्र और दायित्व के वजन से उन्हीं कंधों पर बचपन में सवारी लगती चेतक सी जरूरत भी पड़ी कभी ,सहारे की यदि उन्हें स्वयं के लाल की परछाई,कदाचित ढूंढ न पाएं प्रतिक्षा की उम्मीद में वक्त कुछ ही बचा है अब मगर यह भी नहीं है तय कि तुम मिल पाओगे या नहीं हमेशा साफ चश्मे को किया करता हूं मैं अक्सर नजर कमजोर हैं मेरी मन बहला लिया करता हूं कहकर कि कदाचित तुम मुझे अब दिख नहीं पाते अभी मैं भूल जाता हूं , जले चूल्हे को बंद करना पता घर का नहीं केवल, खुले जिप को भी बंद करना बटन वाली कमीज अब मैं ,पहन पता नहीं खुद से मगर कुर्ते में अक्सर ही मुझे अब ठंड लगती है शरीर अब शव बना जाता मरघट सा लगे घर भी सरसैया लगे बिस्तर सुकूं मिलता न क्षण भर भी बहुत तरसी मेरी अखियां, तुम्हें फुर्सत मिली न पर नहीं मैं याद आता क्या सूना लगता है अब शहर क्या वीडियो कॉल पर ही फिर से मिलने का इरादा है ? या मैं समझूं मेरी चिन्ता,मेरे दुलार से तेरी तनख्वाह ज्यादा है कभी उत्सव के न्योते पर नवादा ऑफलाइन आ जाना पिता अनुरोध करता है, बनाना न कोई बहाना खड़े पाया था साथ अपने ,कठिन हालात में जिनको अकेला पा रहे वे खुद को ,जरूरत है उन्हें तेरी तुम्हारी आश में उनको, जीते देख पाया हूं सहारे के नहीं मोहताज, तुम्हीं उनकी हो कमजोरी स्वरचित कविता –प्रिया कुमारी ©Priya Kumari Niharika

#nojotopoetry #MoonShayari #Tranding  शीर्षक: ढलती उम्र और संतान
उन हथेलियों से उंगलियां
छूटना चाहती है पूरी ताकत लगाकर
जिन्हें थाम कर कभी 
हुई थी गलियों से मुलाकात 
जिनकी रीढ़ अब लगभग झुकी है
उम्र और दायित्व के वजन से
उन्हीं कंधों पर बचपन में
सवारी लगती चेतक सी
जरूरत भी पड़ी कभी ,सहारे की यदि उन्हें
स्वयं के लाल की परछाई,कदाचित ढूंढ न पाएं 
प्रतिक्षा की उम्मीद में वक्त कुछ ही बचा है अब
मगर यह भी नहीं है तय
कि तुम मिल पाओगे या नहीं 
हमेशा साफ चश्मे को
किया करता हूं मैं अक्सर
नजर कमजोर हैं मेरी 
मन बहला लिया करता हूं कहकर कि कदाचित तुम
 मुझे अब दिख नहीं पाते
अभी मैं भूल जाता हूं , जले चूल्हे को बंद करना
पता घर का नहीं केवल, खुले जिप को भी बंद करना
बटन वाली कमीज अब मैं ,पहन पता नहीं खुद से
मगर कुर्ते में अक्सर ही मुझे अब ठंड लगती है 
शरीर अब शव बना जाता
मरघट सा लगे घर भी
सरसैया लगे बिस्तर
सुकूं मिलता न क्षण भर भी
बहुत तरसी मेरी अखियां,
तुम्हें फुर्सत मिली न पर 
नहीं मैं याद आता क्या
 सूना लगता है अब शहर
क्या वीडियो कॉल पर ही फिर से मिलने का इरादा है ?
या मैं समझूं मेरी चिन्ता,मेरे दुलार से तेरी तनख्वाह ज्यादा है
कभी उत्सव के न्योते पर नवादा ऑफलाइन आ जाना
पिता अनुरोध करता है, बनाना न कोई  बहाना 
खड़े पाया था साथ अपने ,कठिन हालात में जिनको
अकेला पा रहे वे खुद को  ,जरूरत है उन्हें तेरी
तुम्हारी आश में उनको, जीते देख पाया हूं
सहारे के नहीं मोहताज, तुम्हीं उनकी हो कमजोरी
                    स्वरचित कविता
                   –प्रिया कुमारी

©Priya Kumari Niharika

आप बने आदर्श हमारे, व्यापक हमारे हुए विचार थाम कर शिष्यों की उंगली, आप कराते नैया पार नई दिशा जो दी आपने ,जटिलताएं सरल हो गई सीखने के प्रयास अनेकों,धीरे-धीरे सफल हो गई भूल हमारी करी क्षमा,और हृदय से अपनाया है संघर्षों का सामना करना, अपने ही सिखलाया है कमी हमेशा शेष रहेगी, आप हमेशा साथ रहे कमियों को हम दूर करें तो,आप हमें शाबाश कहें अपरिमित विवेक आपका, अतुलनीय अंदाज है आप से गुरुवर के लिए,कम मेरे अल्फाज़ है ©Priya Kumari Niharika

#कविता  आप बने आदर्श हमारे, व्यापक हमारे हुए विचार
 थाम कर शिष्यों की उंगली, आप कराते नैया पार
 नई दिशा जो दी आपने ,जटिलताएं सरल हो गई
 सीखने के प्रयास अनेकों,धीरे-धीरे सफल हो गई
 भूल हमारी करी क्षमा,और हृदय से अपनाया है
 संघर्षों का सामना करना, अपने ही सिखलाया है 
कमी हमेशा शेष रहेगी, आप हमेशा साथ रहे
 कमियों को हम दूर करें तो,आप हमें शाबाश कहें
अपरिमित विवेक आपका, अतुलनीय अंदाज है
आप से गुरुवर के लिए,कम मेरे अल्फाज़ है

©Priya Kumari Niharika

आप बने आदर्श हमारे, व्यापक हमारे हुए विचार थाम कर शिष्यों की उंगली, आप कराते नैया पार नई दिशा जो दी आपने ,जटिलताएं सरल हो गई सीखने के प्रयास अनेकों,धीरे-धीरे सफल हो गई भूल हमारी करी क्षमा,और हृदय से अपनाया है संघर्षों का सामना करना, अपने ही सिखलाया है कमी हमेशा शेष रहेगी, आप हमेशा साथ रहे कमियों को हम दूर करें तो,आप हमें शाबाश कहें अपरिमित विवेक आपका, अतुलनीय अंदाज है आप से गुरुवर के लिए,कम मेरे अल्फाज़ है ©Priya Kumari Niharika

16 Love

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