अब अंधेरा घिर जाए तो जुगुनू नहीं आते
अगर नींद न आए , तो सपने नही आते
एक अरसे से खाली पड़ा है कमरा मेरा,
सुना है, दौलत न हो तो अपने नही आते।
उनका भी दावा है, जिंदगी भर साथ चलने का
जो शाम ढल जाए, तो मिलने नहीं आते।
मुफ़लिसी में सपनों के घरोंदे भी टूट जाते हैं
मुद्दा-ए-बहस ये है कि , रहने नहीं आते।
✍️poetramashankar
अब अंधेरा घिर जाए तो जुगुनू नहीं आते
अगर नींद न आए , तो सपने नही आते
एक अरसे से खाली पड़ा है कमरा मेरा,
सुना है, दौलत न हो तो अपने नही आते।
उनका भी दावा है, जिंदगी भर साथ चलने का
जो शाम ढल जाए, तो मिलने नहीं आते।
मुफ़लिसी में सपनों के घरोंदे भी टूट जाते हैं
मुद्दा-ए-बहस ये है कि , रहने नहीं आते।
✍️poetramashankar
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जब वो हंसती है तो हंसते हैं
ये नदियाँ , झरने ये पेड़ सारे
जब वो मुस्कुराती है तो
साथ उसके मुस्काती हैं ये दीवारें
उसका वो हाथों से चेहरे को छिपाना
जैसे चाँद का बादल में छिप जाना
उसका चेहरे से हाथ को हटाना जैसे
धीरे से चाँद का बादल से निकल जाना
@poetramashankar
दिल में अब किताबों का , घर हुआ तो है
आंखों से दिल तक का, सफर हुआ तो है
हिज्र,आशिक़ी,शराब मैं सब जनता हूँ
उसे इश्क़ करने का, असर हुआ तो है।
जिसके शाख से उड़ गए होंगे परिंदे भी
जंगल में ऐसा भी, शजर हुआ तो है।
खबर लाओ कि चाय पर बुलाया है उसने
सुना है प्यालो मे भी, जहर हुआ तो है।
✍️@poetramashankar
दिल में अब किताबों का , घर हुआ तो है
आंखों से दिल तक का, सफर हुआ तो है
हिज्र,आशिक़ी,शराब मैं सब जनता हूँ
उसे इश्क़ करने का, असर हुआ तो है।
जिसके शाख से उड़ गए होंगे परिंदे भी
जंगल में ऐसा भी, शजर हुआ तो है।
खबर लाओ कि चाय पर बुलाया है उसने
सुना है प्यालो मे भी, जहर हुआ तो है।
✍️@poetramashankar
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मन सहमा-सहमा लगता है,
दिन रातों में ढल जाता हैं,,,
अंजुल में पानी भर भी लो,
वो धीरे धीरे बह जाता है।
आंखों की चौखट से ताल्लुक
जिन सपनों का रहता है,
लड़ने की जिद अपनी है पर
डर अपनो का रहता है।
✍️poetramashankar
मन सहमा-सहमा लगता है,
दिन रातों में ढल जाता हैं,,,
अंजुल में पानी भर भी लो,
वो धीरे धीरे बह जाता है।
आंखों की चौखट से ताल्लुक
जिन सपनों का रहता है,
लड़ने की जिद अपनी है पर
डर अपनो का रहता है।
✍️poetramashankar
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आंखों से दिल तक का सफर,हुआ तो है
दिल में अब किताबों का घर, हुआ तो है।
हिज्र,आशिक़ी,शराब मैं सब जानता हूँ
उसे इश्क़ करने का असर, हुआ तो है।
जिसके शाख से उड़ गए होंगे परिंदे भी
जंगल में ऐसा भी शजर, हुआ तो है।
✍️@poetramashankar
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