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Unsplash कुछ प्रेम मिलन के लिए नहीं होते… वे नहीं होते साथ चलने के लिए वे वनवास काटते हुए अनकहे और अनसुने रहने के लिए होते हैं वे एक दूसरे के पूरक होते हुए भी अधूरे रहने के लिए होते हैं वे मात्र यही संतोष कर पाते हैं… कि वे किसी के हृदय में हैं कि वे किसी के मस्तिष्क में हैं कि कोई उनकी सुधियाँ बुनता है कि कोई उनके लिए अनायास मुस्कुराता है या नम आँखें फेर लेता है। कुछ प्रेम उत्सव नहीं मना पाते, पर वे उपवास रखते हैं और दो घूँट प्रेम उन्हें जीवित रखता है... हरदम... हरपल.. हमेशा... मेरा प्रेम ऐसा ही है.... ©Manvi Singh Manu
Manvi Singh Manu
12 Love
White अपने हिस्से की धूप बांट दी उन लोगों में वो जिन्हें रौशनी दरकार हुआ करती थी मैंने जल जल के अपनी शख़्सियत उजली कर ली अंधेरा पहली दफ़ा हारने पे मुस्काया मुस्कुराइए ••• जिससे इस कायनात की ख़ूबसूरती बनी रहे😊 ©Manvi Singh Manu
13 Love
White भाव न हों भयभीत हमारे हम काँटों से क्यूँ कतराएँ वो ठहरे मनमीत हमारे। हमने अपनी क्षमता से ही जग के हर वैभव को पाया द्वेष रहा ठुकराता हमको ख़ुद हमने ख़ुद को अपनाया भाग्य परखता रहा हमेशा बाधाओं को चुनने वाले कहाँ चले आसान डगर पर वही तथागत बन पाये जो सब कुछ तज कर गये सफ़र पर त्याग-भावना गौरवशाली अनुभव कालातीत हमारे हमने अपनी पीड़ाओं को काव्य बना कर मान दिया है सीख भरी है ऋचा सरीखी सामवेद का गान दिया है इन पीड़ाओं के परिचायक बनकर फिरते गीत हमारे बंधन नहीं लुभाता कोई मन से यूँ आज़ाद हुये हैं जैसा हमें बनाया उस ने हम वैसी ईजाद हुये हैं जीवन के इस रंगमंच के पात्र सभी अभिनीत हमारे! ©Manvi Singh Manu
White " मन अकेला चल पड़ा है पुन्य पथ पर। नेह की माला लिए पाषाण रथ पर। है मुझे मालूम कांटो का सफर है। सत्य की होती बड़ी मुश्किल डगर है। खो भले ये प्राण जांए ना रुकूंगीं। अब किसी रावण के आगे ना झुकूंगीं। ©Manvi Singh Manu
15 Love
White पतझड़ सिखाता है, बिना मोह के जाने देना कितना सुंदर होता है! अपनी सबसे सुंदर कोमल पत्तियों का भी डाली स्वयं परित्याग कर देता है.. जो पत्तियां डाल नहीं त्यागती वो वहीं डाली पर लटके हुए ही कंकाल में परिवर्तीत होने लगती हैं। प्रकृति की सुंदरता अनित्यता को स्वीकार करने में है! कब कहां उपस्थित रहना है! इससे महत्वपूर्ण ये बोध होना है कि कब उस स्थान को त्याग देना है। यही जीवन चक्र है.. यह स्वीकार करते हुए कि हर विदा एक नए प्रारंभ की आश्वस्ति लेकर आता है। ©Manvi Singh Manu
Unsplash कुछ के लिए में खास लिखती हूं। कुछ के लिए बकवास लिखती हूं। हां क्यों न मुझ पर हंसें लोग ? खोकर जो अपने होशोहवास लिखती हूं। भला कैसे हो अदब मेरी कवीताओं में ? होकर जो मैं बदहवास लिखती हूं। उतर आते हैं शब्द दिल से कागज़ पर सच को जो मैं बेलिबास लिखती हूं। क्यों न सितम करे ए जमाना मुझ पर । समंदर के हिस्से में मैं जो प्यास लिखती हूं ? ©Manvi Singh Manu
16 Love
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