Unsplash कुछ के लिए में खास लिखती हूं।
कुछ के लिए बकवास लिखती हूं।
हां क्यों न मुझ पर हंसें लोग ?
खोकर जो अपने
होशोहवास लिखती हूं।
भला कैसे हो अदब मेरी कवीताओं में ?
होकर जो मैं बदहवास लिखती हूं।
उतर आते हैं शब्द दिल से कागज़ पर
सच को जो मैं बेलिबास लिखती हूं।
क्यों न सितम करे ए
जमाना
मुझ पर ।
समंदर के हिस्से में
मैं जो प्यास लिखती हूं ?
©Manvi Singh Manu
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