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भाव न हों भयभीत हमारे
हम काँटों से क्यूँ कतराएँ
वो ठहरे मनमीत हमारे।
हमने अपनी क्षमता से ही
जग के हर वैभव को पाया
द्वेष रहा ठुकराता हमको
ख़ुद हमने ख़ुद को अपनाया
भाग्य परखता रहा हमेशा
बाधाओं को चुनने वाले
कहाँ चले आसान डगर पर
वही तथागत बन पाये जो
सब कुछ तज कर गये सफ़र पर
त्याग-भावना गौरवशाली
अनुभव कालातीत हमारे
हमने अपनी पीड़ाओं को
काव्य बना कर मान दिया है
सीख भरी है ऋचा सरीखी
सामवेद का गान दिया है
इन पीड़ाओं के परिचायक
बनकर फिरते गीत हमारे
बंधन नहीं लुभाता कोई
मन से यूँ आज़ाद हुये हैं
जैसा हमें बनाया उस ने
हम वैसी ईजाद हुये हैं
जीवन के इस रंगमंच के
पात्र सभी अभिनीत हमारे!
©Manvi Singh Manu
#sad_quotes