गुस्ताख़शब्द

गुस्ताख़शब्द

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#गुस्ताख़शब्द #विचार #Butterfly #musings #story  उड़ान; आज़ादी।

छज्जे पर गया ही था की एक बहुत सुंदर से पंछी पर ध्यान ठहर गया। आसपास की कृत्रिम रोशनी में भी उसका तेज़ देखते ही बनता था। कुछ तो बात खास थी उसमें, धूसर परिदृश्य में भी प्रकाश की युक्ति सा प्रतीत हो रहा था वो।


एकाएक हवा का वेग आया। आँखों में अंधड़ की धूल से अदृश्यता छा गई। जैसे ही आँखें साफ करी, ध्यान पंछी की तरफ़ मुड़ने को आतुर हो गया। इस बार मुझमें चमक आ गई। वो पंछी अभी भी वहीं था, आंधी उसे टस से मस न कर पाई थी। जैसे कठिन परिस्थितियां जड़ से उखाड़ नहीं पाती हैं अडिग चट्टानों को ठीक वैसे ही वेग की अधिकता के बावजूद इस एक अकेले पक्षी को उसके परिवेश से डिगाना कठिन साबित हुआ प्रकृति के लिए।


पंछी की निष्ठुरता को सराहना अभी खत्म नहीं हुआ था कि अकस्मात ही उसने उड़ान भर दी। फड़फड़ाते पंखों की ध्वनि सुनाई तो नहीं पड़ रही थी पर न जाने क्यों परोक्ष रूप से महसूस कर पा रहा था मैं। शायद मेरी बढ़ती गहनता को भांप लिया गया था और उसे समझ आ गया था कि ओझल हो जाना ही बेहतर है, उसका अपनी आंतरिक सौंदर्यता को बनाए रखने के लिए। हालांकि सच भी इससे बहुत दूर नहीं था, ये एक पक्षी मुझे भा तो गया था। नीरस मन की आवश्यकता निश्चित रूप से तृष्णा को दूर कर नमी के सार को पा लेने में ही निहित होती है। उस एक पक्षी की अचलता ने मेरे काैतूहल को पंख दे दिए थे। 


मेरी दृष्टि को भले उसकी उड़ान से विरक्तता मिलने वाली थी परंतु मुझे ये भी ज्ञात था कि ये उड़ान ही उसको अपनी यथार्थ मंज़िल की ओर ले जाने वाली है। पंछी को उड़ता देख भी मेरे होठों पर भीनी मुस्कान का होना बहुत सारे बुद्धिजीवियों को उधेड़बुन में डाल सकता है मगर मेरे अभ्यंतर की रिक्तता को परिपूर्ण करने का जो मुश्किल कार्य उसने इतनी कम अवधि में कर दिया वह शायद ही पुनः हो पाए। इस बात का किसी और को समझ आना या नहीं बिल्कुल भी मायने नहीं रखता है। वो पंछी कल भी आज़ाद था, आज भी है, कल भी उसके पंख कोई काट नहीं पाएगा और उसकी निरंतर उड़ान नई ऊंचाई को ही अग्रसर रहेगी।

©गुस्ताख़शब्द

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बीतती सेहरों में, पल पुराने सींचते होगे तुम। याद करने कल को, आँख मींचते होगे तुम।। क्या सावन अगहन, तारीखें नोचते होगे तुम। फिर लगा कयास भावी, हमें सोचते होगे तुम।। ©गुस्ताख़शब्द

#गुस्ताख़शब्द #हिंदी_कविता #कविता #waiting #longing  बीतती सेहरों में, पल पुराने सींचते होगे तुम।
याद करने कल को, आँख मींचते होगे तुम।।

क्या सावन अगहन, तारीखें नोचते होगे तुम।
फिर लगा कयास भावी, हमें सोचते होगे तुम।।

©गुस्ताख़शब्द

साक्ष्य चाहिए तुम्हें कैसा, प्रेम नहीं हैं धर्म जैसा। न धागा न ताबीज़... रंग सूफ़ी ये कोरा ऐसा।। तुम कागजी चाल चाहते हो, ज़माने से मिसाल चाहते हो। मेरी तिश्नगी मेरी प्रेरणा... तुम जां 'गुस्ताख़' चाहते हो।। ©गुस्ताख़शब्द

#पंक्ति #प्रेम #हिंदी #स्नेह #फ़िल्म #Life_experience  साक्ष्य चाहिए तुम्हें कैसा,
प्रेम नहीं हैं धर्म जैसा।
न धागा न ताबीज़...
रंग सूफ़ी ये कोरा ऐसा।।

तुम कागजी चाल चाहते हो,
ज़माने से मिसाल चाहते हो।
मेरी तिश्नगी मेरी प्रेरणा...
तुम जां 'गुस्ताख़' चाहते हो।।

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“Kise chahiye mann ka sona, aankh ke moti? Kise padi hai andar kya hai?” तारा- “Ye tum nahi ho Ved. ye sab nakli hai.” वेद- “Wo toh acting thi naa. Wo mai role play kar raha tha. Aur ye mai real mei hoon.” #lovequotes #Question #प्रेम #स्नेह #Deep #individuality #Life_experience #हिंदी #पंक्ति #Inspiration

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#गुस्ताख़शब्द #जिंदगी #प्रेम #कविता #शायरी #gustaakhshabd    तुम्हें आरंभ याद है, मुझे अंत पता है।
तुम्हें प्रेम भाये है, मेरा दर्द ख़ता है।।

तुम ठहरा आसमां, मैं नदी का छोर हूं।
तुम ढलती शाम, मैं सुबह का शोर हूं।।

तुम होंठों की हँसी, मैं रूह का ग़म हूं।
तुम गिलास़ आधा, मैं पैमाना कम हूं।।

तुम कहानी पूरी, मैं अधूरा छंद हूं?
तुम आज़ाद पंछी, मैं क़ैद बंद हूं?

©गुस्ताख़शब्द

हम जिनकी पनाह में बैठे थे, वो किसी और का पल्लू थामे हैं। #Love #Hate #Life #प्रेम #धोखा #Deep #गुस्ताख़शब्द #gustaakhshabd #जिंदगी #कविता

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#गुस्ताख़शब्द #प्रेम #सत्य #मकान #भ्रम #whatmatters  मकां देखे मैंने ऐसे... 🌇

जहां में लोग कैसे कैसे, मकां देखे मैंने ऐसे वैसे। #Reality #सत्य #भ्रम #मकान #प्रेम #गुस्ताख़शब्द #whatmatters #Question

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#गुस्ताख़शब्द #ज़िन्दगी #संपूर्ण #चाँद #आभा #ओज  मुझे तेरी आभा विचलित नहीं करती,
और तेरे ओज से संपूर्ण नहीं है धरती,
भले तेरा रूप विशाल होता जाए...
तेरी पियूष की नदियाँ अब नहीं झरती।

©गुस्ताख़शब्द
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