मुझे तेरी आभा विचलित नहीं करती, और तेरे ओज से संपूर्ण नहीं है धरती, भले तेरा रूप विशाल होता जाए... तेरी पियूष की नदियाँ अब नहीं झरती। ©गुस्ताख़शब्द #चाँद #आभ.
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