साक्ष्य चाहिए तुम्हें कैसा,
प्रेम नहीं हैं धर्म जैसा।
न धागा न ताबीज़...
रंग सूफ़ी ये कोरा ऐसा।।
तुम कागजी चाल चाहते हो,
ज़माने से मिसाल चाहते हो।
मेरी तिश्नगी मेरी प्रेरणा...
तुम जां 'गुस्ताख़' चाहते हो।।
©गुस्ताख़शब्द
“Kise chahiye mann ka sona, aankh ke moti? Kise padi hai andar kya hai?”
तारा- “Ye tum nahi ho Ved. ye sab nakli hai.”
वेद- “Wo toh acting thi naa. Wo mai role play kar raha tha. Aur ye mai real mei hoon.”
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