तुम्हें आरंभ याद है, मुझे अंत पता है।
तुम्हें प्रेम भाये है, मेरा दर्द ख़ता है।।
तुम ठहरा आसमां, मैं नदी का छोर हूं।
तुम ढलती शाम, मैं सुबह का शोर हूं।।
तुम होंठों की हँसी, मैं रूह का ग़म हूं।
तुम गिलास़ आधा, मैं पैमाना कम हूं।।
तुम कहानी पूरी, मैं अधूरा छंद हूं?
तुम आज़ाद पंछी, मैं क़ैद बंद हूं?
©गुस्ताख़शब्द
हम जिनकी पनाह में बैठे थे, वो किसी और का पल्लू थामे हैं।
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