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मिट्टी का तन, मस्ती का मन क्षण -भर जीवन मेरा परिचय
White स्याह है भले किरदार मिरा पर सीरत शफ़्फ़ाक़ है कहता है बदचलन ज़माना जिसे दामन, उसका भी पाक है ©Kirbadh
Kirbadh
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सुरमई अखियों में सुरमा लगा के चिलमन में अपना चेहरा छुपा के नशीले नैनों के तीर चला के चली गईं वो जियरा चुरा के ©Kirbadh
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Unsplash असमंजस है बहुत राहें भी कम नहीं क्या करूँ? किसको चुनु? किधर को मैं चल पड़ूं होती उथल-पुथल मन में आता है तूफ़ान भावनाओं की लहरों पर होकर सवार हिलने लगती हैं आस्थाएं बरबस ही कभी-कभी बहुत कठिन होता है चुन पाना एक राह प्रज्ञा को भी ©Kirbadh
सारा जीवन बस धनार्जन को दौड़ने के बाद खुदगर्ज़ी की पराकाष्ठा पर पहुंचने के बाद सभी सगे-संबंधियों को ताना मारने का बाद हम पाएंगे कि महलों में अकेले रहा नहीं जा सकता अंतिम वृक्ष को काट दिये जाने के बाद अंतिम नदी को विषाक्त करने के बाद अंतिम मछली पकड़ लिए जाने के बाद हम पाएंगे कि पैसे को खाया नहीं जा सकता (copied) ©Kirbadh
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White था बहुत समझाया मुझे दुनियां वालों ने अनसुनी कर चल पड़ा मैं बांधे सर कफ़न मांगती तुम क़ज़ा की दुआ तो अच्छा होता यूँ तड़पने के लिए क्यूँ छोड़ गई वादाशिकन ©Kirbadh
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मुंडेर पर आ बैठा है आज कबूतर लगता है किसी ने पैग़ाम भेजा है ©Kirbadh
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