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मिट्टी का तन, मस्ती का मन क्षण -भर जीवन मेरा परिचय
सुरमई अखियों में सुरमा लगा के चिलमन में अपना चेहरा छुपा के नशीले नैनों के तीर चला के चली गईं वो जियरा चुरा के ©Kirbadh
Kirbadh
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Unsplash असमंजस है बहुत राहें भी कम नहीं क्या करूँ? किसको चुनु? किधर को मैं चल पड़ूं होती उथल-पुथल मन में आता है तूफ़ान भावनाओं की लहरों पर होकर सवार हिलने लगती हैं आस्थाएं बरबस ही कभी-कभी बहुत कठिन होता है चुन पाना एक राह प्रज्ञा को भी ©Kirbadh
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सारा जीवन बस धनार्जन को दौड़ने के बाद खुदगर्ज़ी की पराकाष्ठा पर पहुंचने के बाद सभी सगे-संबंधियों को ताना मारने का बाद हम पाएंगे कि महलों में अकेले रहा नहीं जा सकता अंतिम वृक्ष को काट दिये जाने के बाद अंतिम नदी को विषाक्त करने के बाद अंतिम मछली पकड़ लिए जाने के बाद हम पाएंगे कि पैसे को खाया नहीं जा सकता (copied) ©Kirbadh
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White था बहुत समझाया मुझे दुनियां वालों ने अनसुनी कर चल पड़ा मैं बांधे सर कफ़न मांगती तुम क़ज़ा की दुआ तो अच्छा होता यूँ तड़पने के लिए क्यूँ छोड़ गई वादाशिकन ©Kirbadh
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मुंडेर पर आ बैठा है आज कबूतर लगता है किसी ने पैग़ाम भेजा है ©Kirbadh
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White फिर फूट पड़ी है आशा की लौ प्राची में सिंदूरी हुआ आसमान गुजर गया स्याह रातों का कारवां ले अंगड़ाई फिर उठ पड़ा है जहान फिर नई उमंग लेकर आया है सबेरा विपिन-विटपों ने छेड़ी शीतल मंद बयार विहग-वृंदों ने छोड़ा अपना रैन बसेरा नाच उठे फिर से मकरंद करते गूँजार वट-वृक्षों से लिपट झूम उठी लताऐं महक उठा मधुवन पुष्प-प्रसूनों से स्वर रागिनियाँ बज उठी चहुं ओर कोयल ने कर ली जुगलबंदी बुलबुल से जीवों की क्रिणाओं से स्पंदित हो रही धरा थम गए सारे हो रहे रण भीषण घमासान पुलकित हो उठा रोम-रोम सहर्ष ही प्रकृति ने फेर दी जो सबके चेहरों पर मुस्कान ©Kirbadh
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