Unsplash असमंजस है बहुत
राहें भी कम नहीं
क्या करूँ? किसको चुनु?
किधर को मैं चल पड़ूं
होती उथल-पुथल मन में
आता है तूफ़ान
भावनाओं की लहरों पर
होकर सवार
हिलने लगती हैं आस्थाएं
बरबस ही
कभी-कभी बहुत कठिन होता है
चुन पाना एक राह
प्रज्ञा को भी
©Kirbadh
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