प्रीति प्रभा

प्रीति प्रभा Lives in Delhi, Delhi, India

ज़िन्दगी बहुत कुछ सीखा देती हैं वक़्त आने पर अपनों की पहचान करवा देती हैं विपत्ति आने पर ✍️✍️

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White कौन कहते है कि पुरुष रोते नहीं पुरुष भी रोते है अपने भीतर रोम–रोम में दिखाते नहीं है कभी परन्तु पुरुष के व्यथा से पत्थरों में भी दरार पड़ सकती है लेकिन कभी दिखाते नहीं है अपनी आसूंओं को किसी के समक्ष जैसे कभी बता नहीं पाते अपनी संतान को कितना प्रेम करते है परवाह करते है वो ताउम्र बिना बताए फिक्र करते है कितनी ये कभी जताते नहीं बस ख़ामोश रहकर प्रेम करते है बिना उम्मीद के निरंतर कभी पिता, कभी भाई, कभी मित्र तो कभी बेटा कभी हमसफ़र बनकर निभाते रहते है अपने हर कर्तव्य को कठोर बनकर...। ©प्रीति प्रभा

#प्रीतिप्रभा #writerscommunity #कविता #ankahibaatein__  White कौन कहते है कि पुरुष रोते नहीं
पुरुष भी रोते है 
अपने भीतर रोम–रोम में 
दिखाते नहीं है कभी
परन्तु पुरुष के व्यथा से 
पत्थरों में भी दरार पड़ सकती है 

लेकिन कभी दिखाते नहीं है 
अपनी आसूंओं को किसी के समक्ष
जैसे कभी बता नहीं पाते अपनी संतान को
कितना प्रेम करते है 
परवाह करते है वो
ताउम्र बिना बताए

फिक्र करते है कितनी
ये कभी जताते नहीं 
बस ख़ामोश रहकर प्रेम करते है 
बिना उम्मीद के निरंतर
कभी पिता, कभी भाई, कभी मित्र तो कभी बेटा
कभी हमसफ़र बनकर निभाते रहते है 
अपने हर कर्तव्य को कठोर बनकर...।

©प्रीति प्रभा

ज़िन्दगी की गुल्लक में सब कुछ भरता रहता है चाहे अनचाहे, जाने अनजाने सब अच्छा लगता है गुल्लक की फांस से झांकना उसे हिलाना ज़िन्दगी के बीते लम्हों का याद दिलाना ©प्रीति प्रभा

#प्रीतिप्रभा #poetrycommunity #कविता #instawriters #hindikavita  ज़िन्दगी की गुल्लक में सब कुछ भरता रहता है
चाहे अनचाहे, जाने अनजाने सब अच्छा लगता है

गुल्लक की फांस से झांकना उसे हिलाना
ज़िन्दगी के बीते लम्हों का याद दिलाना

©प्रीति प्रभा
#मुस्कुराहट #कविता #ankahibaatein__ #puraniyaadein
#प्रीतिप्रभा #कविता #mother_Love #Connections  संतान के लिए
मांँ की चिंता छुपती नहीं
और पिता का प्रेम दिखता नहीं..।

©प्रीति प्रभा
#प्रीतिप्रभा #कविता  लिखने बैठो तो 
मन व्याकुल हो उठता है
शब्दों के सागर में भावनाओं 
के अनेक रंग निखर के आता है
लिख कर पढ़ कर स्वयं के
ही कविताओं को
नैनों में अश्रु भर जाता है

सोचती हूंँ अगर कभी किताब हाथ
ना आती मेरे तो क्या
मैं इन शब्दों से परिचित हो पाती
या शब्दों के रूप में अपने भाव 
पन्नो पर उकेर पाती
शायद नहीं कर सकती थी कभी

घर संभालना, रिश्ते निभाना 
यहीं सिखाया गया बचपन से
फिर भी एक उम्मीद हुई
कुछ आंखों में नए सपने सजे
स्त्री हूंँ अक्षरों से साक्षात्कार
करने में समय लगा

©प्रीति प्रभा
#प्रीतिप्रभा #कविता #खत   स्याही का काम नहीं अब
अब कलम घर कौन लाता है
मोबाईल की बैटरी काफ़ी
बस इतना ही उंगलियों को नाचता है
अब ख़त कौन लिखता है
डाकखाना कौन जाता है
सब व्यस्त है मशीनी मानव
सुख दुःख कोई नहीं पूछता
पहले अपनापन होता था
आज वह कहीं दिखता नहीं है
अब ख़त कौन लिखता है

©प्रीति प्रभा
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