स्याही का काम नहीं अब
अब कलम घर कौन लाता है
मोबाईल की बैटरी काफ़ी
बस इतना ही उंगलियों को नाचता है
अब ख़त कौन लिखता है
डाकखाना कौन जाता है
सब व्यस्त है मशीनी मानव
सुख दुःख कोई नहीं पूछता
पहले अपनापन होता था
आज वह कहीं दिखता नहीं है
अब ख़त कौन लिखता है
©प्रीति प्रभा
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