White कौन कहते है कि पुरुष रोते नहीं पुरुष भी रोते | हिंदी कविता

"White कौन कहते है कि पुरुष रोते नहीं पुरुष भी रोते है अपने भीतर रोम–रोम में दिखाते नहीं है कभी परन्तु पुरुष के व्यथा से पत्थरों में भी दरार पड़ सकती है लेकिन कभी दिखाते नहीं है अपनी आसूंओं को किसी के समक्ष जैसे कभी बता नहीं पाते अपनी संतान को कितना प्रेम करते है परवाह करते है वो ताउम्र बिना बताए फिक्र करते है कितनी ये कभी जताते नहीं बस ख़ामोश रहकर प्रेम करते है बिना उम्मीद के निरंतर कभी पिता, कभी भाई, कभी मित्र तो कभी बेटा कभी हमसफ़र बनकर निभाते रहते है अपने हर कर्तव्य को कठोर बनकर...। ©प्रीति प्रभा"

 White कौन कहते है कि पुरुष रोते नहीं
पुरुष भी रोते है 
अपने भीतर रोम–रोम में 
दिखाते नहीं है कभी
परन्तु पुरुष के व्यथा से 
पत्थरों में भी दरार पड़ सकती है 

लेकिन कभी दिखाते नहीं है 
अपनी आसूंओं को किसी के समक्ष
जैसे कभी बता नहीं पाते अपनी संतान को
कितना प्रेम करते है 
परवाह करते है वो
ताउम्र बिना बताए

फिक्र करते है कितनी
ये कभी जताते नहीं 
बस ख़ामोश रहकर प्रेम करते है 
बिना उम्मीद के निरंतर
कभी पिता, कभी भाई, कभी मित्र तो कभी बेटा
कभी हमसफ़र बनकर निभाते रहते है 
अपने हर कर्तव्य को कठोर बनकर...।

©प्रीति प्रभा

White कौन कहते है कि पुरुष रोते नहीं पुरुष भी रोते है अपने भीतर रोम–रोम में दिखाते नहीं है कभी परन्तु पुरुष के व्यथा से पत्थरों में भी दरार पड़ सकती है लेकिन कभी दिखाते नहीं है अपनी आसूंओं को किसी के समक्ष जैसे कभी बता नहीं पाते अपनी संतान को कितना प्रेम करते है परवाह करते है वो ताउम्र बिना बताए फिक्र करते है कितनी ये कभी जताते नहीं बस ख़ामोश रहकर प्रेम करते है बिना उम्मीद के निरंतर कभी पिता, कभी भाई, कभी मित्र तो कभी बेटा कभी हमसफ़र बनकर निभाते रहते है अपने हर कर्तव्य को कठोर बनकर...। ©प्रीति प्रभा

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