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अल्फाज़ नहीं दर्द लिखता हूँ खुद मे ही अब तुमको लिखता हूँ
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के कहा से निकला कहा आ पहुंचा हूँ खुद से निकला था तुम तक आ पहुँचा हूँ मेरा जीवन उहीं सफ़र में ही रहा जबसे दरिया से कश्ती लेकर समुन्दर में उतरा हूँ ©@Mishra
@Mishra
10 Love
अब तो झुर्रिया भी आने लगी हैं इस चहरे पे तुम इतना करोगी क्या इस कँप-कँपाते हुए होंठों से कुछ गुफ़्तगू करोगी क्या तुम भरके आगो़श में मुझे अपने रख लो चार दिन फ़िर मुझे बिदा करोगी क्या तुम इतना करोगी क्या! ©@Mishra
15 Love
White के किसी की सादगी में, एक ज़माने तक इस कदर मशगूल रहा की उसकी एक तासीर भी ना पड़ी मुझपे मैं यूँही रोज संवरता रहा ©@Mishra
13 Love
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