Abhishek Choudhary

Abhishek Choudhary

कवि, शायर, लेखक

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a-person-standing-on-a-beach-at-sunset रफ़्ता-रफ़्ता सुखन में ढल रही हो क्या तुम भी मेरे फ़िराक़ में जल रही हो। जिस जगह तुम को बदलना होता न था अब वहीं आकर बातें बदल रही हो। खैर हम भी अब इस दुनियाँ से क्या ही उम्मीद करें जो खुद अपने ज़ख्म मल रही हो। ये कैसी मस्ती छाई हैं तुम में देर करके भी धीमे चल रही हो। हमें तो बस ज़िन्दगी के मजे लूटने हैं जानाँ वो जिंदगी ही क्या जो बस पल रही हो। इतने आब-ए-चश्म भी अच्छे नहीं होते इक छोटे से खयाल में इतना पिघल रही हो। क्या कोई काला जादू हुआ हैं तुम पर जो मेरी ज़िन्दगी से निकल रही हो। एक ख्वाब ही तो टूटा हैं हमारा, नया बना लेंगे तुम आखिर क्यूँ इतना मचल रही हो। -अभिषेक चौधरी ©Abhishek Choudhary

#शायरी #SunSet  a-person-standing-on-a-beach-at-sunset  रफ़्ता-रफ़्ता सुखन में ढल रही हो 
क्या तुम भी मेरे फ़िराक़ में जल रही हो।

जिस जगह तुम को बदलना होता न था 
अब वहीं आकर बातें बदल रही हो।

खैर हम भी अब इस दुनियाँ से क्या ही उम्मीद करें 
जो खुद अपने ज़ख्म मल रही हो।

ये कैसी मस्ती छाई हैं तुम में 
देर करके भी धीमे चल रही हो।

हमें तो बस ज़िन्दगी के मजे लूटने हैं जानाँ 
वो जिंदगी ही क्या जो बस पल रही हो।

इतने आब-ए-चश्म भी अच्छे नहीं होते 
इक छोटे से खयाल में इतना पिघल रही हो।

क्या कोई काला जादू हुआ हैं तुम पर
जो मेरी ज़िन्दगी से निकल रही हो।

एक ख्वाब ही तो टूटा हैं हमारा, नया बना लेंगे 
तुम आखिर क्यूँ इतना मचल रही हो।
                               
                                                -अभिषेक चौधरी

©Abhishek Choudhary

#SunSet #Shayari

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a-person-standing-on-a-beach-at-sunset रफ़्ता-रफ़्ता सुखन में ढल रही हो क्या तुम भी मेरे ख़यालों में जल रही हो। जिस जगह तुम को बदलना होता न था अब वहीं आकर बातें बदल रही हो। खैर हम भी अब इस दुनियाँ से क्या ही उम्मीद करें जो खुद अपने ज़ख्म मल रही हो। ये कैसी मस्ती छाई हैं तुम में देर करके भी धीमे चल रही हो। हमें तो बस ज़िन्दगी के मजे लूटने हैं जानाँ वो जिंदगी क्या काम की जो बस पल रही हो। इतने आब-ए-चश्म भी अच्छे नहीं होते इक छोटे से फ़िराक़ में इतना पिघल रही हो। क्या कोई काला जादू हुआ हैं तुम पर जो मेरी ज़िन्दगी से निकल रही हो। एक ख्वाब ही तो टुटा हैं हमारा, नया बना लेंगे तुम आखिर क्यूँ इतना मचल रही हो। -अभिषेक चौधरी ©Abhishek Choudhary

#शायरी #Shaayari #SunSet  a-person-standing-on-a-beach-at-sunset रफ़्ता-रफ़्ता सुखन में ढल रही हो 
क्या तुम भी मेरे ख़यालों में जल रही हो।

जिस जगह तुम को बदलना होता न था 
अब वहीं आकर बातें बदल रही हो।

खैर हम भी अब इस दुनियाँ से क्या ही उम्मीद करें 
जो खुद अपने ज़ख्म मल रही हो।

ये कैसी मस्ती छाई हैं तुम में 
देर करके भी धीमे चल रही हो।

हमें तो बस ज़िन्दगी के मजे लूटने हैं जानाँ 
वो जिंदगी क्या काम की जो बस पल रही हो।

इतने आब-ए-चश्म भी अच्छे नहीं होते 
इक छोटे से फ़िराक़ में इतना पिघल रही हो।

क्या कोई काला जादू हुआ हैं तुम पर
जो मेरी ज़िन्दगी से निकल रही हो।

एक ख्वाब ही तो टुटा हैं हमारा, नया बना लेंगे 
तुम आखिर क्यूँ इतना मचल रही हो।
                               
                                                -अभिषेक चौधरी

©Abhishek Choudhary
#शायरी #nightthoughts  White सारे  बसेरे यूं ही बिखर जाएंगे 
अगर परिंदे गांव छोड़ शहर जाएंगे।

तुमसे हमारा नाता भी तो कुछ यूँ ही हैं 
अगर तुम्हारा हाथ छूटा तो हम मर जाएंगे।

सबका हक़ीम-ए-आफत, वो मालिक बना हैं 
अगर फूँक उठा बदन तो सब शजर जाएंगे।

हाय वो चेहरा, जिसका दीदार ही एक जाम हैं 
अगर वो ना मिला हमको तो हम किधर जाएंगे।

सबका चलते रहना ही अच्छा हैं सभी के लिए 
सब सूखा हो जाएगा अगर बादल ठहर जाएंगे।

बारिश की ठंडी बूंद सा एहसास उसके छूने में हैं 
अगर तड़पना होगा दिल को तो हम उधर जाएंगे।

                                                            -अभिषेक चौधरी

©Abhishek Choudhary

#nightthoughts

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#शायरी  दिल गंवा बैठे हैं तुझपे ना जाने अनजाने में 
आह निकल आती हैं तेरी सूरत के नज़राने में।

कई दिन दोपहर गुजारी हैं तेरे गलियारे में
कई रातें बिता दीं तेरी ज़ुल्फ़ों के अंधियारे में
कई सपने सजाए तेरी आँखों के पैमाने में
आह निकल आती हैं तेरी सूरत के नज़राने में।

रोज चुपके से देखूं मैं तुझको उस चौबारे में
और तब दिल खींचा चला आए तेरे एक इशारे में
आग लगी रहती हैं अब इस प्रेम के दीवाने में
आह निकल आती हैं तेरी सूरत के नज़राने में।              

                                                 -अभिषेक चौधरी

©Abhishek Choudhary

#Love

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#शायरी  यूँ तो मयस्सर नहीं हैं साथ सोना
दिल-ए-बरबाद करके रोना
हुजरे में बज़्म-ओ-आब खेल लेते हैं 
फिर क्या अफ़सोस उसका होना, ना होना।

बेरहम ज़माने से इश्क़ करना
उसकी यादों में आहें भरना
हम ये जज़्बात थाम लेते हैं
फिर क्या हिज़्र के डर से डरना।

उसका बेजान दिल दुखाना
यादों, हिचकियों में फिर सताना 
हम तो हर दिल को जाम देते हैं
क्यूँ वो खिलता कमल मुरझाना।

रातों को दगाबाज कहना
दु:ख को दिल में दबाए सहना
हम तो सीधा उसको कोस लेते हैं
क्यूँ किसी ओर शय में रहना।           -अभिषेक चौधरी

©Abhishek Choudhary

यूँ तो मयस्सर नहीं हैं साथ सोना दिल-ए-बरबाद करके रोना हुजरे में बज़्म-ओ-आब खेल लेते हैं फिर क्या अफ़सोस उसका होना, ना होना। बेरहम ज़माने से इश्क़ करना उसकी यादों में आहें भरना हम ये जज़्बात थाम लेते हैं फिर क्या हिज़्र के डर से डरना। उसका बेजान दिल दुखाना यादों, हिचकियों में फिर सताना हम तो हर दिल को जाम देते हैं क्यूँ वो खिलता कमल मुरझाना। रातों को दगाबाज कहना दु:ख को दिल में दबाए सहना हम तो सीधा उसको कोस लेते हैं क्यूँ किसी ओर शय में रहना। -अभिषेक चौधरी ©Abhishek Choudhary

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#शायरी #Dream  परवाना थक चुका हैं, पर जीत पाता नहीं
बिना जीत नाकामी में अब और जिया जाता नहीं।

वक्त बदला जाता हैं तदबीर की आजमाइश से 
वक़्त, बेवक़्त यूँ ही बदल जाता नहीं।

ख्वाब खुद ही देखने पड़ते हैं ज़िन्दगी के लिए
कोई हमको ख्वाब दिखाने आता नहीं।

मुझे दौलत से इश्क़ हैं, मुझे शोहरत कमानी हैं
ज़माल-ओ-शराब से मेरा कोई नाता नहीं।

                                                    -अभिषेक चौधरी

©Abhishek Choudhary

#Dream

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