सारस(रमेश शर्मा)

सारस(रमेश शर्मा) Lives in Bilaspur, Chhattisgarh, India

I am senior district court lawyer & writing shyari , songs since 1975, many of my shyaris got the chance to be published in kadabani magazine & navbharat news paper (Bhopal edition 1985).

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सारस के कलम से काव्य पुस्पाजली.. #मेरे पिता "श्री चंद्रिका प्रसाद उपाध्य जी। # सहज सरल इंसान थे ऐसे,कोई हो नहीं सकता उनके जैसा कर्म योगी संन्यासी जैसे, जीवन भर था वह हंस जैसे ----- धन सांचययी, मित भाषी मित व्ययी तेज दिमाग़ कुशाग्र बुद्धि गौ, लक्ष्मी की सेवा करते,हर शास्त्र का ज्ञाता द्विज ----- गीता, रामायण उनके स्वासो में, सुबह शाम बसे थे सदाचार सदव्याहर में,उनका कोई सानी नहीं था ----- अथाह प्रेम था उनका मेरे लिए, मै ना समझ उधमी पुत्र था कभी भी भूल कर भी मुझे एक क्षण भी वह मुझे भुला नहीं था ----- ©सारस(रमेश शर्मा)

#नोजोतोहिन्दी #मेरे #reading  सारस के कलम से काव्य पुस्पाजली..

#मेरे पिता "श्री चंद्रिका प्रसाद उपाध्य जी। #


सहज सरल इंसान थे ऐसे,कोई हो नहीं सकता उनके जैसा
कर्म योगी संन्यासी जैसे, जीवन भर था वह हंस जैसे
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धन सांचययी, मित भाषी मित व्ययी
तेज दिमाग़ कुशाग्र बुद्धि
गौ, लक्ष्मी की सेवा करते,हर शास्त्र का ज्ञाता द्विज
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गीता, रामायण उनके स्वासो में, सुबह शाम बसे थे
सदाचार सदव्याहर में,उनका कोई सानी नहीं था
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अथाह प्रेम था उनका मेरे लिए, मै ना समझ उधमी पुत्र था
कभी भी भूल कर भी मुझे
एक क्षण भी वह मुझे भुला  नहीं था
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©सारस(रमेश शर्मा)

जिंदगी का रंग देख कर, मै तो रह गया दंग बचपन से बुढ़ापे तक, इस जीवन के संग ------ कभी नर्म तो कभी गर्म, कभी शीतल मधुमंद कभी तमतमाया कभी शांत, कभी पीकर भंग मतंग ------ घुटनों के बल चलते देखा, सिना तान के चलने लगा आया बुढ़ापे में मै देखा , लाठी टेक के कैसे चलता ---- मृगतृष्णा कभी खत्म न होगी , जीवन के अंतिम क्षण तक सुनहरा जिसने जीवन देखा , बुढ़ापे में हो जाता बदरंग ---- प्यार मिला मुझे सबसे, हर उम्र में रहा शहजादा विधाता की कृपा है ऐसी , पाया में उम्मीदों से ज्यादा ©सारस(रमेश शर्मा)

#नोजोतोहिन्दी #जीवन #सफर  जिंदगी का रंग देख कर, मै तो रह गया दंग 
बचपन से बुढ़ापे तक, इस जीवन के संग
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कभी नर्म तो कभी गर्म, कभी शीतल मधुमंद
कभी तमतमाया कभी शांत, कभी पीकर भंग मतंग
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घुटनों के बल चलते देखा, सिना तान के चलने लगा 
आया बुढ़ापे में मै देखा , लाठी टेक के कैसे चलता
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मृगतृष्णा कभी खत्म न होगी , जीवन के अंतिम क्षण तक
सुनहरा जिसने जीवन देखा , बुढ़ापे में हो जाता बदरंग
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प्यार मिला मुझे सबसे, हर उम्र में रहा शहजादा
विधाता की कृपा है ऐसी , पाया में उम्मीदों से ज्यादा

©सारस(रमेश शर्मा)
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"नारी ही नारायणी है" कहीं रंग भेद कहीं जाति भेद की रहती क्यों यह बुराई, भारत की पावन धरा पर मानवता क्यों तू भुलाई!! कहीं जातिभेद कहीं लिंग भेद जीवन की हुई दुखदाई भारत की पावन धरा पर तूने क्यों उपजाई!! कहीं अमीरी कहीं गरीबी की बनी हुई बड़ी खाई, भारत की पावन धरा पर प्रेम कहां है समाई!! इन सब भेदो में ही भूले जीवन सुख की अंगड़ाई, भारत के इस पावन धरा पर खुद को मिटा रहे रघुराई!! ©सारस(रमेश शर्मा)

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कहीं रंग भेद कहीं जाति भेद
की रहती क्यों यह बुराई,
भारत की पावन धरा पर मानवता क्यों तू भुलाई!!
कहीं जातिभेद कहीं लिंग भेद जीवन की हुई दुखदाई
भारत की पावन धरा पर तूने क्यों उपजाई!!
कहीं अमीरी कहीं गरीबी की बनी हुई बड़ी खाई,
भारत की पावन धरा पर प्रेम कहां है समाई!!
इन सब भेदो में ही भूले जीवन सुख की अंगड़ाई,
भारत के इस पावन धरा पर खुद को मिटा रहे रघुराई!!

©सारस(रमेश शर्मा)

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10 Love

"सारस के कलम से" जिंदगी की थकान से, उम्र के इस पड़ाव में। थका हुआ मन मेरा, गृहस्थ की तनाव में।। सारस की यह वेदना, व्याकुल मन की व्यथा। किससे जाकर हम कहें, अपने जीवन की कथा।। बोलने वाले बहुत हो गए, सुनने वाले कहां मिलेंगे। आज की परवरिश में, छोटा बोलता बड़ा सुनता है।। मित्र सब स्वार्थ हैं , दिखावे की परमार्थ है। अंतर्मन में कलह भरे, किससे जाकर हम कहे।। पढ़ने वाले विद्वान हैं, धैर्य का पहचान है। इस शोर भरी महफिल में, उत्पीड़न की घाव है।। आज की यह दुनिया, बेनूर होती जा रही। सुख शांति कहीं दिखता नहीं, इस तपती धूप में काव्य मेरा छांव है।। मेरे प्रिय जनों मित्रों देवियों, सज्जनों से करबद्ध निवेदन है। आपका मेरा काव्य पढ़ना, मेरे जीवन का वरदान है।।

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जिंदगी की थकान से, उम्र के इस पड़ाव में।
थका हुआ मन मेरा, गृहस्थ की तनाव में।।

सारस की यह वेदना, व्याकुल मन की व्यथा।
किससे जाकर हम कहें, अपने जीवन की कथा।।

बोलने वाले बहुत हो गए, सुनने वाले कहां मिलेंगे।
आज की परवरिश में, छोटा बोलता बड़ा सुनता है।।

मित्र सब स्वार्थ हैं , दिखावे की परमार्थ है।
अंतर्मन में कलह भरे, किससे जाकर हम कहे।।

पढ़ने वाले विद्वान हैं, धैर्य का पहचान है।
इस शोर भरी महफिल में, उत्पीड़न की घाव है।।

आज की यह दुनिया, बेनूर होती जा रही।
सुख शांति कहीं दिखता नहीं, इस तपती धूप में काव्य मेरा छांव है।।

मेरे प्रिय जनों मित्रों देवियों, सज्जनों से करबद्ध निवेदन है।
आपका मेरा काव्य पढ़ना, मेरे जीवन का वरदान है।।

"सारस की कलम से" नफरत करके कोई, इस धरती पर जी नहीं पाता! प्रेम बीज से मन मुदित हो, जीवन में सब खुशियां पाता!! पेड़ का हरा भरा रहना, धरती पर फसल लहराना! आकाश से जलका वर्षा होना, कलियों की बाग में मुस्काना!! प्रेम बिंदु है सब में समाहित, अंतःकरण की चेतना जागृत! हर जन मानस का, हंसना, बोलना, खिलखिलाना!! प्रेम की गहराइयों को, जिसने भी जीवन में समझा! मौत को भी मात देकर, सर उठा कर आगे चलता!! मैंने अपनी कवि ह्रदय से, अब तक जो भी लिख पाया! उन सब गीत ,काव्य में, प्रेम बिंदु की रस धारा!! हमको तुम को समझना होगा, लोगों को भी समझाना होगा! प्रेम जगत का सार तत्व है, ईश्वर की वरदान सुधा है!!

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नफरत करके कोई, इस धरती पर जी नहीं पाता!
प्रेम बीज से मन मुदित हो, जीवन में सब खुशियां पाता!!

पेड़ का हरा भरा रहना, धरती पर फसल लहराना!
आकाश से जलका वर्षा होना, कलियों की बाग में मुस्काना!!

प्रेम बिंदु है सब में समाहित, अंतःकरण की चेतना जागृत!
हर जन मानस का, हंसना, बोलना, खिलखिलाना!!

प्रेम की गहराइयों को, जिसने भी जीवन में समझा!
मौत को भी मात देकर, सर उठा कर आगे चलता!!

मैंने अपनी कवि ह्रदय से, अब तक जो भी लिख पाया!
उन सब गीत ,काव्य में, प्रेम बिंदु की रस धारा!!

हमको तुम को समझना होगा, लोगों को भी समझाना होगा!
प्रेम जगत का सार तत्व है, ईश्वर की वरदान सुधा है!!
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