सारस के कलम से काव्य पुस्पाजली..
#मेरे पिता "श्री चंद्रिका प्रसाद उपाध्य जी। #
सहज सरल इंसान थे ऐसे,कोई हो नहीं सकता उनके जैसा
कर्म योगी संन्यासी जैसे, जीवन भर था वह हंस जैसे
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धन सांचययी, मित भाषी मित व्ययी
तेज दिमाग़ कुशाग्र बुद्धि
गौ, लक्ष्मी की सेवा करते,हर शास्त्र का ज्ञाता द्विज
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गीता, रामायण उनके स्वासो में, सुबह शाम बसे थे
सदाचार सदव्याहर में,उनका कोई सानी नहीं था
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अथाह प्रेम था उनका मेरे लिए, मै ना समझ उधमी पुत्र था
कभी भी भूल कर भी मुझे
एक क्षण भी वह मुझे भुला नहीं था
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©सारस(रमेश शर्मा)
#नोजोतोहिन्दी
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