जिंदगी का रंग देख कर, मै तो रह गया दंग
बचपन से बुढ़ापे तक, इस जीवन के संग
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कभी नर्म तो कभी गर्म, कभी शीतल मधुमंद
कभी तमतमाया कभी शांत, कभी पीकर भंग मतंग
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घुटनों के बल चलते देखा, सिना तान के चलने लगा
आया बुढ़ापे में मै देखा , लाठी टेक के कैसे चलता
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मृगतृष्णा कभी खत्म न होगी , जीवन के अंतिम क्षण तक
सुनहरा जिसने जीवन देखा , बुढ़ापे में हो जाता बदरंग
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प्यार मिला मुझे सबसे, हर उम्र में रहा शहजादा
विधाता की कृपा है ऐसी , पाया में उम्मीदों से ज्यादा
©सारस(रमेश शर्मा)
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