"सारस के कलम से"
जिंदगी की थकान से, उम्र के इस पड़ाव में।
थका हुआ मन मेरा, गृहस्थ की तनाव में।।
सारस की यह वेदना, व्याकुल मन की व्यथा।
किससे जाकर हम कहें, अपने जीवन की कथा।।
बोलने वाले बहुत हो गए, सुनने वाले कहां मिलेंगे।
आज की परवरिश में, छोटा बोलता बड़ा सुनता है।।
मित्र सब स्वार्थ हैं , दिखावे की परमार्थ है।
अंतर्मन में कलह भरे, किससे जाकर हम कहे।।
पढ़ने वाले विद्वान हैं, धैर्य का पहचान है।
इस शोर भरी महफिल में, उत्पीड़न की घाव है।।
आज की यह दुनिया, बेनूर होती जा रही।
सुख शांति कहीं दिखता नहीं, इस तपती धूप में काव्य मेरा छांव है।।
मेरे प्रिय जनों मित्रों देवियों, सज्जनों से करबद्ध निवेदन है।
आपका मेरा काव्य पढ़ना, मेरे जीवन का वरदान है।।
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