कोई है जिसे मैं सोचता हूँ,
कोई है जिसे मैं लिखता हूँ ,
कोई है जिसे मैं पढ़ता हूँ,
कोई है जिसे मैं लतीफ़े सुनाता हूँ,
हां ये सच है कि वो मुझे नहीं सोचती,
हां वो मुझे नहीं लिखती,
ना ही वो मुझे पढ़ती है,
ना ही मुझे लतीफ़े सुनाती,
शायद वो मुझे कुछ नहीं समझती
फिर भी वो ही तो जिसे मैं सब कुछ समझता हूं।
~ सौरभ आनंद।
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©Saurabh Anand
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