Kalpana yadav

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मेरे मिटने का उनको जरा गम नहीं अपने होने न होने से होता है क्या काम दुनिया का यूँ ही तो चल जाएगा आप ने दिल जो 'ज़ाहिद का तोड़ा तो क्या आप ने उसकी दुनिया को छोड़ा तो क्या आप इतने तो आख़िर परेशां न हों वो सम्भलते सम्भलते सम्भल जाएगा ©Kalpana yadav

#WalkingInWoods #JagjitSingh #Gulzar  मेरे मिटने का उनको जरा गम नहीं
 अपने होने न होने से होता है क्या
 काम दुनिया का यूँ ही तो चल जाएगा


आप ने दिल जो 'ज़ाहिद का तोड़ा तो क्या
 आप ने उसकी दुनिया को छोड़ा तो क्या 
आप इतने तो आख़िर परेशां न हों
 वो सम्भलते सम्भलते सम्भल जाएगा

©Kalpana yadav
#aadmibulbulahaipaanika #JagjitSingh #love❤️ #myownvoice

मिटा दो सारे निशां के थे तुम उठो तो ऐसे के कोई पत्ता हिले न जागे लिबास का एक एक तागा उतारकर यूँ उठो के आहट से छू न जाओ अभी यही थे अभी नही हो खयाल रखना की जिंदगी की कोई भी सिलवट न मौत के पाक साफ चेहरे के साथ जाए ©Kalpana yadav

#JagjitSingh #Quotes #Gulzar #gazal  मिटा दो सारे निशां के थे तुम
उठो तो ऐसे के कोई पत्ता हिले न जागे
लिबास का एक एक तागा उतारकर यूँ उठो
के आहट से छू न जाओ
अभी यही थे
अभी नही हो
खयाल रखना की जिंदगी की कोई भी सिलवट
न मौत के पाक साफ चेहरे के साथ जाए

©Kalpana yadav

"पहले से क्या लिखा था इस वीरान जज़ीरे पर चट्टानों से उतर के जब सूरज गुरुब हो सुर्ख सुनहरी साहिलों पे तुम मिलो मुझे और इस तरह फिसल के गिरो तुम मेरे करीब जैसे समंदरों ने अभी ला के फेंका हो यह पहले से नविश्ता था या इत्तेफ़ाक़ था सूरज के बाद चाँद निकलने के वक्फे में तारीखी जब के मौत सूंघती है हर तरफ शायद किसी के दर्द विसर्जन को आयी थी उस रात चाँद भी तो बहुत देर से उठा और तुम किताबें दर्द के जख्मों को खोल कर मुझको सुनाते भी रहे और फाड़ते भी रहे पानी पे दूर दूर तक पुर्जे से बिछ गए रुखसत के वक़्त हाथ मिलाते हुए मगर करवट बदल रहा था कोई दर्द सीने में आसूं तुम्हारी आँखों में फिर से नविश्ता थे और इत्तेफ़ाक मेरी भी आँखें छलक गयी पहले से क्या नविश्ता है क्या इत्तेफ़ाक़ है" ©Kalpana yadav

#brokenwords #Memories #Feeling #Gulzar  "पहले से क्या लिखा था 

इस वीरान जज़ीरे पर
चट्टानों से उतर के जब सूरज गुरुब हो
सुर्ख सुनहरी साहिलों पे तुम मिलो मुझे
और इस तरह फिसल के गिरो तुम मेरे करीब
जैसे समंदरों ने अभी ला के फेंका हो
यह पहले से नविश्ता था या इत्तेफ़ाक़ था
सूरज के बाद चाँद निकलने के वक्फे में
तारीखी जब के मौत सूंघती है हर तरफ
शायद किसी के दर्द विसर्जन को आयी थी
उस रात चाँद भी तो बहुत देर से उठा
और तुम किताबें दर्द के जख्मों को खोल कर
मुझको सुनाते भी रहे और फाड़ते भी रहे
पानी पे दूर दूर तक पुर्जे से बिछ गए
रुखसत के वक़्त हाथ मिलाते हुए मगर
करवट बदल रहा था कोई दर्द सीने में
आसूं तुम्हारी आँखों में फिर से नविश्ता थे
और इत्तेफ़ाक मेरी भी आँखें छलक गयी
पहले से क्या नविश्ता है क्या इत्तेफ़ाक़ है"

©Kalpana yadav
#travelling #Memories #bparak #Music

zindagi se kahan tak nibhaun main us bewafa ke saath mera naam likh diya aasan nahin tarq e muhabbat ki dastaan do aansuon ne aakhiri paigaam likh diya barson ke intezaar ka anjaam likh diya kaagaz pe shaam kaat ke phir shaam likh diya ©Kalpana yadav

 zindagi se kahan tak nibhaun main
 us bewafa ke saath mera naam likh diya

aasan nahin tarq e muhabbat ki dastaan
do aansuon ne aakhiri paigaam likh diya

barson ke intezaar ka anjaam likh diya 
kaagaz pe shaam kaat ke phir shaam likh diya

©Kalpana yadav

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