*कोई कोई बात*
*बेचैन सी कर देती है उसकी मुझे , कोई कोई बात*
*मैं भूलना भी चाहूँ तो भूल न पाऊँ उसकी , कोई कोई बात*
*जब भी हम मिले अधूरी सी रह गई हमारी , कोई कोई बात*
*याद रखता हूँ किस्से मगर भूल जाता हूँ अपनी , कोई कोई बात*
*जिंदगी मेरी राएगाँ ना गई याद रखी मैंने उसकी , कोई कोई बात*
*इश्क़ तो उससे मुक्कमल है मगर अधूरी रह गई इश्क़ की , कोई कोई बात*
*सारे राज़ मैं ज़ाहिर भी कर देता मगर फिर भी रह जाती ,
मेरी कोई कोई बात*
*वजाहत में उलझकर यही लिखा ‘आलोक’ , कि अनकही रहे या
न रहे कोई कोई बात*
©ALOK SONI
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