Thakur Rajan Singh

Thakur Rajan Singh

विद्रोही कवि....

  • Latest
  • Popular
  • Video
#विचार #LongRoad  कमियां...

हमारी कमियों पर अगर हम खुद चर्चा करने लगे तो , सिर्फ़ और सिर्फ़ कमियां ही कमियां निकलने लगेंगी..
वो कमियां जो हमें ही सिर्फ़ मालूम हैं वो कमियां जो हमने अपने अंतस में ऐसे धारें हुएं है जैसे वो कमियां कमियां न हो बल्कि खूबियां हो...

अगर अंतस फट जाए तो सारी कमियां ऐसे बिखर जाएंगी जैसे मुठ्ठी से सरसों बिखर जाया करती है... कभी कभी हमें ये सोचना पड़ता है कि मैं भाग किससे रहा हूं और डर किससे रहा हूं... 
तो जवाब मिलता हैं , कि भाग मैं खुद से रहा हूं अपने आप से और इतनी तेज़ भाग रहा हूं की सब पीछे छूट रहा हैं और फ़िर अचानक से लगता है कि नहीं...

मैं खुद से नहीं भाग रहा हूं... मेरे अंदर की कमियां न मुझे भागने देती हैं और न ही रुकने देती हैं.. मैं घायल परिंदे की तरह फड़फड़ाया करता हूं...कमियां इतनी बढ़ चुकी हैं की अगर कुछ अच्छा करने भी जाएं तो अच्छा किसी कीमत पे हो ही नहीं सकता... 
और डर अंतस में ऐसे भरा है कि जैसे मुझसे मेरा कोई न कोई छूट रहा हो और वो कोई कौन है ये मुझे भी नहीं पता...
किसी से मोहब्बत करें तो मोहब्बत कमियां निकाल देती है , किसी से दोस्ती करें तो दोस्ती कमियां निकाल देती हैं किसी से बात करें तो बातें भी कमियां निकाल देती है... मुझसे भगाते हुए लोग मुझे हर पल ये अहसास दिलाते हैं की मैं बुजदिल इंसान हूं और बहुत ही ज़्यादा बुरा इंसान हूं.... और ये वकाई में सच्ची बात है...
अगर देखा जाए तो वाकई में मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ कमियों वाला किरदार हूं एक बुरा किरदार...

लेकिन तमाम सारी कमियों के बाद भी अगर कोई खूबी मुझमें बचती हैं और मुझमें हैं तो बस वो ये हैं कि मैंने मां पे शेर कहे हैं...
और यही आख़िरी और सबसे तस्सली वाली बात है...

लेकिन सिर्फ़ एक खूबी किसी इंसान को बेहतर नहीं बना सकती ...

: राजन सिंह 🙂🙂

©Thakur Rajan Singh

#LongRoad

216 View

#happypromiseday #loveshayari  झूठ कि मासूम है दिलबर हमारा
उसके हाथ हैं खूनी खंज़र हमारा

हम जिसे दुनिया बताते रह गए
वो लड़की खा गई करियर हमारा

और अब पास में भी कुछ नहीं 
फुटपाथ पे आ गया बिस्तर हमारा

इश्क़ की ठोकरों ने ये सिखाया 
दर दर बदर हो गया है दर हमारा

इस गली के सारे पत्थर कह रहे थे
हो गया है पागल ये शायर हमारा

हम तेरे ही गोद में मर जाएंगे और
तुम भूल न पाओगी मंज़र हमारा

पूछेंगे लोग तुमसे कि राजन कौन
बोलना कि था कोई सफ़र हमारा

: राजन सिंह 🥺🥺












...

©Thakur Rajan Singh
#विचार  कई सालों से अपने सफ़र में रही मोहब्बत की भाषा हिन्दी , गांव की मिट्टी से लेकर शहर की हवा तक हिन्दी रही.....गांव से लेकर शहर तक हम अपनी भाषा बोलते रहें... हंसते हुए किसी को पुकारा तो हिन्दी में पुकारा , रोते हुए किसी को गुहार लगाई तो हिन्दी में लगाई..गुस्से में किसी को गाली दी तो हिन्दी में दी, किसी से प्रेम की बात की तो हिन्दी में की....चारों तरफ़ हिन्दी का समंदर रहा...
मेरी मां ने मुझको पुकारा तो हिन्दी में पुकारा....मेरा नाम राजन रखा...Shakespeare नहीं रखा..... 
रात में अंधेरे में डर लगा तो हनुमान चालीसा हिन्दी में जपने लगे , दर्द में चीखें तो हिन्दी में चीखें... आज़ादी की लड़ाई में हिन्दी का योगदान रहा अंग्रेज़ी बोल कर गांधी ने लोगों को इकट्ठा नहीं किया, गांव की गंवार से लेकर इंदिरा की दहाड़ तक हिन्दी रही...नेहरू के विकास से लेकर मोदी जी की बर्बादी तक जब भी किसी प्रधानमंत्री ने देश का संबोधन किया हिन्दी में किया...
फ़िर भी बड़ी अजीब बात हैं कि हिन्दी को विदेशी भाषा अंग्रेज़ी के सामने तुच्छ समझा जाता है... वेद पुराण से लेकर जो कुछ भी लिखा संस्कृत में लिखा गया अपनी भाषा में संस्कृत में संस्कृत की संस्कृति के सानिध्य में हिन्दी पली बढ़ी....मगर हिंदुस्तान के ऐतिहासिक लेखकों एवं चिंतकों ने हिन्दी को घुटने पे ला दिया...
चंद लोगों को छोड़कर ...
उन्होंने कोई भी किताब लिखी तो अंग्रेज़ी में लिखी भोजपुरी , बंगाली , हिन्दी, मराठी , संस्कृत में नहीं लिखी... चंद इतिहासकारों को छोड़कर....
ज्यादातर किताबें अंग्रेज़ी में लिखी गई और उनका अनुवाद कर दिया गया....
..हिंदुस्तान का इतिहास लिखने वालों ने भी यही किया .... उन्होंने खंडहर को खंडहर नहीं लिखा बल्कि Ruins लिखा..बोलने में कुछ और लिखने में कुछ समझने में कुछ और ...सब कुछ और से कुछ और रहा , जो अंग्रेज़ी भाषा ख़ुद का उच्चारण और अर्थ, व्याकरण नहीं तय कर पाई ... वो आज हिन्दी का भविष्य तय करने पे लगी है ...
जिस भाषा में कभी मिट्टी पे लेटे हुए और फुटपाथ झोपड़ी गांव में रहने वाले लोगों ने सपने नहीं देखें ...जिस भाषा में बच्चे ने अपनी मां को रोते हुए नहीं देखा...जिस भाषा ने दिल पे राज नहीं किया...
उस भाषा का स्तर इतना बढ़ा दिया गया की हिन्दी मील का आख़िरी पत्थर हो गई.... 
 अगर अंग्रेज़ी इतनी ही ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं आने वाले हिंदुस्तान के लिए तो फिर ( हिन्दी हैं हम वतन हैं हिंदोस्तान हमारा ) क्यूं हैं ... इसको बदल के अंग्रेज़ी हैं हम वतन हैं हिंदुस्तान हमारा कर देना चाहिए....













...

©Thakur Rajan Singh

कई सालों से अपने सफ़र में रही मोहब्बत की भाषा हिन्दी , गांव की मिट्टी से लेकर शहर की हवा तक हिन्दी रही.....गांव से लेकर शहर तक हम अपनी भाषा बोलते रहें... हंसते हुए किसी को पुकारा तो हिन्दी में पुकारा , रोते हुए किसी को गुहार लगाई तो हिन्दी में लगाई..गुस्से में किसी को गाली दी तो हिन्दी में दी, किसी से प्रेम की बात की तो हिन्दी में की....चारों तरफ़ हिन्दी का समंदर रहा... मेरी मां ने मुझको पुकारा तो हिन्दी में पुकारा....मेरा नाम राजन रखा...Shakespeare नहीं रखा..... रात में अंधेरे में डर लगा तो हनुमान चालीसा हिन्दी में जपने लगे , दर्द में चीखें तो हिन्दी में चीखें... आज़ादी की लड़ाई में हिन्दी का योगदान रहा अंग्रेज़ी बोल कर गांधी ने लोगों को इकट्ठा नहीं किया, गांव की गंवार से लेकर इंदिरा की दहाड़ तक हिन्दी रही...नेहरू के विकास से लेकर मोदी जी की बर्बादी तक जब भी किसी प्रधानमंत्री ने देश का संबोधन किया हिन्दी में किया... फ़िर भी बड़ी अजीब बात हैं कि हिन्दी को विदेशी भाषा अंग्रेज़ी के सामने तुच्छ समझा जाता है... वेद पुराण से लेकर जो कुछ भी लिखा संस्कृत में लिखा गया अपनी भाषा में संस्कृत में संस्कृत की संस्कृति के सानिध्य में हिन्दी पली बढ़ी....मगर हिंदुस्तान के ऐतिहासिक लेखकों एवं चिंतकों ने हिन्दी को घुटने पे ला दिया... चंद लोगों को छोड़कर ... उन्होंने कोई भी किताब लिखी तो अंग्रेज़ी में लिखी भोजपुरी , बंगाली , हिन्दी, मराठी , संस्कृत में नहीं लिखी... चंद इतिहासकारों को छोड़कर.... ज्यादातर किताबें अंग्रेज़ी में लिखी गई और उनका अनुवाद कर दिया गया.... ..हिंदुस्तान का इतिहास लिखने वालों ने भी यही किया .... उन्होंने खंडहर को खंडहर नहीं लिखा बल्कि Ruins लिखा..बोलने में कुछ और लिखने में कुछ समझने में कुछ और ...सब कुछ और से कुछ और रहा , जो अंग्रेज़ी भाषा ख़ुद का उच्चारण और अर्थ, व्याकरण नहीं तय कर पाई ... वो आज हिन्दी का भविष्य तय करने पे लगी है ... जिस भाषा में कभी मिट्टी पे लेटे हुए और फुटपाथ झोपड़ी गांव में रहने वाले लोगों ने सपने नहीं देखें ...जिस भाषा में बच्चे ने अपनी मां को रोते हुए नहीं देखा...जिस भाषा ने दिल पे राज नहीं किया... उस भाषा का स्तर इतना बढ़ा दिया गया की हिन्दी मील का आख़िरी पत्थर हो गई.... अगर अंग्रेज़ी इतनी ही ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं आने वाले हिंदुस्तान के लिए तो फिर ( हिन्दी हैं हम वतन हैं हिंदोस्तान हमारा ) क्यूं हैं ... इसको बदल के अंग्रेज़ी हैं हम वतन हैं हिंदुस्तान हमारा कर देना चाहिए.... ... ©Thakur Rajan Singh

270 View

#शायरी #leaf  मौत के साए में पलती ज़िंदगानी क्यूं हैं
अश्कों की इतनी हमपे मेहरबानी क्यूं हैं

मै कल शब से बहुत उदास हूं राजन
दिल को ख़बर नहीं दिल रेशानी क्यूं हैं  

: राजन सिंह 🥺🥺








































.....

©Thakur Rajan Singh

#leaf

261 View

#विचार #Manipur  






द्रौपदी चीरहरण और मणिपुर चीर हरण 

धृतराष्ट्र की महासभा ...... 

विराजमान सभी विद्वान , ज्ञानी , ऋषि , महाऋषि चुप चाप लज्जा से भरे , 
शांति पूर्वक द्रौपदी के चीरहरण को निहार रहे थे......
द्रौपदी के सवालों का उत्तर न ही गंगापुत्र भीष्म के पास था न ही ,
 द्रोणाचार्य के पास और न ही कृपाचार्य के पास......
सबसे ज़्यादा मूक इस सभा का अंधा राजा धृतराष्ट्र था , 
जिसका सम्पूर्ण योगदान द्रौपदी के चीरहरण में था ....
 अंधे धृतराष्ट्र के कहने पे सभा भंग भी हो सकती थी और चीरहरण होने से रुक भी सकता था...द्रौपदी चीरहरण की जिम्मेदार धृतराष्ट्र की पूरी सभा थी जो पाप होता देख
 मुकता धारण किए हुए थी....
विदुर सिर्फ़ चीख रहे थे और अंधे राजा से रोकने की मांग कर रहे थे 
मगर अंधे राजा ने पुत्रमोह में सब होने दिया ......
बाद में महाभारत के युद्ध में वो सभी लोग मारे गए जो द्रोपदी चीर हरण पे चुप थे....

यही कहानी अब के हिंदुस्तान में भी दोहराई जा रही है.... देश के माननीय प्रधानमंत्री और
 धृतराष्ट्र में तनिक भी अंतर नहीं है .... वो भी अंधे और मुक थे ये भी मानसिक अंधे और मूक हैं.....
इनकी सभा के सभी मंत्री मूक धारण किए मणिपुर में होने वाले हर चीर हरण को देख रहे हैं ......
और यहां पे भी हर द्रौपदी मदद की गुहार नरेंद्र मोदी नामक धृतराष्ट्र से मांग रही है....
 और ये चुप चाप दिखावटी लज्जा के साथ इसमें भी सियासत कर रहे हैं.....
इसमें विदुर का कार्य माननीय मुख्य न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूर्ण कर रहे हैं.....

कभी कभी तो ये डर लगता है कि सरकारें हिंदुस्तान में जिस तरह से महिलाओं की
 यौन शौषण की संखाएं बढ़ रही है और पूरा देश तमाशाइयों की तरह चुप है....
 ऐसे में कभी कभी ये डर लगता है कि कहीं अगर हिंदुस्तान में ऐसे ही होता रहा तो
 एक रोज़ सरकारें बलात्कार को कहीं जायज़ न ठहरा दें और
 फ़िर हिंदुस्तान में लोग बलात्कार दिवस मनाने लग जाएं ......

आने वाले समय में जब कोई इतिहासकार हिंदुस्तान का इतिहास लिखेगा तो 
उसमें ये ज़रूर लिखेगा .
... कि हिंदुस्तान कल्पनाओं और  अखबारों की सुर्खियों में ही सिर्फ़ महान था ...... 
वास्तव में हिंदुस्तान एक बुजदिल लोगों का बुजदिल मुल्क था.....
जहां पर सब तमाशाई थे .....
.राजा भी और प्रजा भी......

: राजन सिंह 🥺🥺










...

©Thakur Rajan Singh

#Manipur...

294 View

#विचार #smoke  









मुझको मेरी कब्र पे भी रोने नहीं देता 
मेरा नहीं जो मेरा मुझे होने नहीं देता

उसको पाने जाऊं तो खो जाता है वो
उसको खोना चाहूं तो खोने नहीं देता

: राजन सिंह ❤️❤️














...

©Thakur Rajan Singh

#smoke

390 View

Trending Topic