कई सालों से अपने सफ़र में रही मोहब्बत की भाषा हिन् | हिंदी विचार Video

"कई सालों से अपने सफ़र में रही मोहब्बत की भाषा हिन्दी , गांव की मिट्टी से लेकर शहर की हवा तक हिन्दी रही.....गांव से लेकर शहर तक हम अपनी भाषा बोलते रहें... हंसते हुए किसी को पुकारा तो हिन्दी में पुकारा , रोते हुए किसी को गुहार लगाई तो हिन्दी में लगाई..गुस्से में किसी को गाली दी तो हिन्दी में दी, किसी से प्रेम की बात की तो हिन्दी में की....चारों तरफ़ हिन्दी का समंदर रहा... मेरी मां ने मुझको पुकारा तो हिन्दी में पुकारा....मेरा नाम राजन रखा...Shakespeare नहीं रखा..... रात में अंधेरे में डर लगा तो हनुमान चालीसा हिन्दी में जपने लगे , दर्द में चीखें तो हिन्दी में चीखें... आज़ादी की लड़ाई में हिन्दी का योगदान रहा अंग्रेज़ी बोल कर गांधी ने लोगों को इकट्ठा नहीं किया, गांव की गंवार से लेकर इंदिरा की दहाड़ तक हिन्दी रही...नेहरू के विकास से लेकर मोदी जी की बर्बादी तक जब भी किसी प्रधानमंत्री ने देश का संबोधन किया हिन्दी में किया... फ़िर भी बड़ी अजीब बात हैं कि हिन्दी को विदेशी भाषा अंग्रेज़ी के सामने तुच्छ समझा जाता है... वेद पुराण से लेकर जो कुछ भी लिखा संस्कृत में लिखा गया अपनी भाषा में संस्कृत में संस्कृत की संस्कृति के सानिध्य में हिन्दी पली बढ़ी....मगर हिंदुस्तान के ऐतिहासिक लेखकों एवं चिंतकों ने हिन्दी को घुटने पे ला दिया... चंद लोगों को छोड़कर ... उन्होंने कोई भी किताब लिखी तो अंग्रेज़ी में लिखी भोजपुरी , बंगाली , हिन्दी, मराठी , संस्कृत में नहीं लिखी... चंद इतिहासकारों को छोड़कर.... ज्यादातर किताबें अंग्रेज़ी में लिखी गई और उनका अनुवाद कर दिया गया.... ..हिंदुस्तान का इतिहास लिखने वालों ने भी यही किया .... उन्होंने खंडहर को खंडहर नहीं लिखा बल्कि Ruins लिखा..बोलने में कुछ और लिखने में कुछ समझने में कुछ और ...सब कुछ और से कुछ और रहा , जो अंग्रेज़ी भाषा ख़ुद का उच्चारण और अर्थ, व्याकरण नहीं तय कर पाई ... वो आज हिन्दी का भविष्य तय करने पे लगी है ... जिस भाषा में कभी मिट्टी पे लेटे हुए और फुटपाथ झोपड़ी गांव में रहने वाले लोगों ने सपने नहीं देखें ...जिस भाषा में बच्चे ने अपनी मां को रोते हुए नहीं देखा...जिस भाषा ने दिल पे राज नहीं किया... उस भाषा का स्तर इतना बढ़ा दिया गया की हिन्दी मील का आख़िरी पत्थर हो गई.... अगर अंग्रेज़ी इतनी ही ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं आने वाले हिंदुस्तान के लिए तो फिर ( हिन्दी हैं हम वतन हैं हिंदोस्तान हमारा ) क्यूं हैं ... इसको बदल के अंग्रेज़ी हैं हम वतन हैं हिंदुस्तान हमारा कर देना चाहिए.... ... ©Thakur Rajan Singh"

कई सालों से अपने सफ़र में रही मोहब्बत की भाषा हिन्दी , गांव की मिट्टी से लेकर शहर की हवा तक हिन्दी रही.....गांव से लेकर शहर तक हम अपनी भाषा बोलते रहें... हंसते हुए किसी को पुकारा तो हिन्दी में पुकारा , रोते हुए किसी को गुहार लगाई तो हिन्दी में लगाई..गुस्से में किसी को गाली दी तो हिन्दी में दी, किसी से प्रेम की बात की तो हिन्दी में की....चारों तरफ़ हिन्दी का समंदर रहा... मेरी मां ने मुझको पुकारा तो हिन्दी में पुकारा....मेरा नाम राजन रखा...Shakespeare नहीं रखा..... रात में अंधेरे में डर लगा तो हनुमान चालीसा हिन्दी में जपने लगे , दर्द में चीखें तो हिन्दी में चीखें... आज़ादी की लड़ाई में हिन्दी का योगदान रहा अंग्रेज़ी बोल कर गांधी ने लोगों को इकट्ठा नहीं किया, गांव की गंवार से लेकर इंदिरा की दहाड़ तक हिन्दी रही...नेहरू के विकास से लेकर मोदी जी की बर्बादी तक जब भी किसी प्रधानमंत्री ने देश का संबोधन किया हिन्दी में किया... फ़िर भी बड़ी अजीब बात हैं कि हिन्दी को विदेशी भाषा अंग्रेज़ी के सामने तुच्छ समझा जाता है... वेद पुराण से लेकर जो कुछ भी लिखा संस्कृत में लिखा गया अपनी भाषा में संस्कृत में संस्कृत की संस्कृति के सानिध्य में हिन्दी पली बढ़ी....मगर हिंदुस्तान के ऐतिहासिक लेखकों एवं चिंतकों ने हिन्दी को घुटने पे ला दिया... चंद लोगों को छोड़कर ... उन्होंने कोई भी किताब लिखी तो अंग्रेज़ी में लिखी भोजपुरी , बंगाली , हिन्दी, मराठी , संस्कृत में नहीं लिखी... चंद इतिहासकारों को छोड़कर.... ज्यादातर किताबें अंग्रेज़ी में लिखी गई और उनका अनुवाद कर दिया गया.... ..हिंदुस्तान का इतिहास लिखने वालों ने भी यही किया .... उन्होंने खंडहर को खंडहर नहीं लिखा बल्कि Ruins लिखा..बोलने में कुछ और लिखने में कुछ समझने में कुछ और ...सब कुछ और से कुछ और रहा , जो अंग्रेज़ी भाषा ख़ुद का उच्चारण और अर्थ, व्याकरण नहीं तय कर पाई ... वो आज हिन्दी का भविष्य तय करने पे लगी है ... जिस भाषा में कभी मिट्टी पे लेटे हुए और फुटपाथ झोपड़ी गांव में रहने वाले लोगों ने सपने नहीं देखें ...जिस भाषा में बच्चे ने अपनी मां को रोते हुए नहीं देखा...जिस भाषा ने दिल पे राज नहीं किया... उस भाषा का स्तर इतना बढ़ा दिया गया की हिन्दी मील का आख़िरी पत्थर हो गई.... अगर अंग्रेज़ी इतनी ही ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं आने वाले हिंदुस्तान के लिए तो फिर ( हिन्दी हैं हम वतन हैं हिंदोस्तान हमारा ) क्यूं हैं ... इसको बदल के अंग्रेज़ी हैं हम वतन हैं हिंदुस्तान हमारा कर देना चाहिए.... ... ©Thakur Rajan Singh

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