कमियां...
हमारी कमियों पर अगर हम खुद चर्चा करने लगे तो , सिर्फ़ और सिर्फ़ कमियां ही कमियां निकलने लगेंगी..
वो कमियां जो हमें ही सिर्फ़ मालूम हैं वो कमियां जो हमने अपने अंतस में ऐसे धारें हुएं है जैसे वो कमियां कमियां न हो बल्कि खूबियां हो...
अगर अंतस फट जाए तो सारी कमियां ऐसे बिखर जाएंगी जैसे मुठ्ठी से सरसों बिखर जाया करती है... कभी कभी हमें ये सोचना पड़ता है कि मैं भाग किससे रहा हूं और डर किससे रहा हूं...
तो जवाब मिलता हैं , कि भाग मैं खुद से रहा हूं अपने आप से और इतनी तेज़ भाग रहा हूं की सब पीछे छूट रहा हैं और फ़िर अचानक से लगता है कि नहीं...
मैं खुद से नहीं भाग रहा हूं... मेरे अंदर की कमियां न मुझे भागने देती हैं और न ही रुकने देती हैं.. मैं घायल परिंदे की तरह फड़फड़ाया करता हूं...कमियां इतनी बढ़ चुकी हैं की अगर कुछ अच्छा करने भी जाएं तो अच्छा किसी कीमत पे हो ही नहीं सकता...
और डर अंतस में ऐसे भरा है कि जैसे मुझसे मेरा कोई न कोई छूट रहा हो और वो कोई कौन है ये मुझे भी नहीं पता...
किसी से मोहब्बत करें तो मोहब्बत कमियां निकाल देती है , किसी से दोस्ती करें तो दोस्ती कमियां निकाल देती हैं किसी से बात करें तो बातें भी कमियां निकाल देती है... मुझसे भगाते हुए लोग मुझे हर पल ये अहसास दिलाते हैं की मैं बुजदिल इंसान हूं और बहुत ही ज़्यादा बुरा इंसान हूं.... और ये वकाई में सच्ची बात है...
अगर देखा जाए तो वाकई में मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ कमियों वाला किरदार हूं एक बुरा किरदार...
लेकिन तमाम सारी कमियों के बाद भी अगर कोई खूबी मुझमें बचती हैं और मुझमें हैं तो बस वो ये हैं कि मैंने मां पे शेर कहे हैं...
और यही आख़िरी और सबसे तस्सली वाली बात है...
लेकिन सिर्फ़ एक खूबी किसी इंसान को बेहतर नहीं बना सकती ...
: राजन सिंह 🙂🙂
©Thakur Rajan Singh
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