Anuradha Narendra Chauhan

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भावनाओं को शब्दों में समेटने की कोशिश

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आक्रोश भरा जन-जन में झुलसी फिर बेटी नगर में सुनो देश के तुम युवाओं चुल्लू भर पानी में मर जाओं क्यों नीयत इतनी सड़ी है बेटी नहीं कोई लकड़ी है जिंदा जिसे जला डाला क्षण भर भी हृदय नहीं कांपा घर में क्या औरत नहीं या दिल में अब गैरत नहीं थक गए अब कानून से जो सने बेटियों के खून से आरोपी फिर होंगे बरी फिर जलेगी निर्भया किसी गली। ***अनुराधा चौहान*** स्वरचित ✍️

#आक्रोश #कविता  आक्रोश भरा जन-जन में
झुलसी फिर बेटी नगर में
सुनो देश के तुम युवाओं
चुल्लू भर पानी में मर जाओं
क्यों नीयत इतनी सड़ी है
बेटी नहीं कोई लकड़ी है
जिंदा जिसे जला डाला
क्षण भर भी हृदय नहीं कांपा
घर में क्या औरत नहीं
या दिल में अब गैरत नहीं
थक गए अब कानून से
जो सने बेटियों के खून से
आरोपी फिर होंगे बरी
फिर जलेगी निर्भया किसी गली।
***अनुराधा चौहान*** स्वरचित ✍️

साँझ सांझ ढल रही है लेकर रौनकें सारी, बहार सिमट रही है तम हो रहा है हावी, आशा के फूल झरकर धरा पे बिखर गए हैं, घर लौट रहें हैं पंछी मेरे घर में है वीरानी।

#सांझ  साँझ  सांझ ढल रही है लेकर रौनकें सारी,
बहार सिमट रही है तम हो रहा है हावी,
आशा के फूल झरकर धरा पे बिखर गए हैं,
घर लौट रहें हैं पंछी मेरे घर में है वीरानी।

किस प्रेम की परिभाषा दूँ प्रेम लिखने की वजह नहीं रग-रग में बसी यह अनुभूति कैसे शब्दों में बयां कर दूँ प्रेयसी के दिल के भाव लिखूँ या में लिख डालूँ माँ की ममता करवाचौथ के व्रत में छुपा हुआ सुहागिन का पति प्रेम लिखूँ कठोरता का ओड़ आवरण पिता के हृदय बसा प्रेम लिखूँ कवि हृदय में बसा हुई रचनाओं से उनकी प्रीत लिखूँ किस प्रेम की परिभाषा दूँ प्रेम लिखने की वजह नहीं रग-रग में बसी यह अनुभूति कैसे शब्दों में बयां कर दूँ

#अनुभूति #प्रेम #कविता  किस प्रेम की परिभाषा दूँ
प्रेम लिखने की वजह नहीं
रग-रग में बसी यह अनुभूति
कैसे शब्दों में बयां कर दूँ

प्रेयसी के दिल के भाव लिखूँ
या में लिख डालूँ माँ की ममता
करवाचौथ के व्रत में छुपा हुआ
सुहागिन का पति प्रेम लिखूँ

कठोरता का ओड़ आवरण
पिता के हृदय बसा प्रेम लिखूँ
कवि हृदय में बसा हुई
रचनाओं से उनकी  प्रीत लिखूँ

किस प्रेम की परिभाषा दूँ
प्रेम लिखने की वजह नहीं
रग-रग में बसी यह अनुभूति
कैसे शब्दों में बयां कर दूँ

चट्टानों से अटल इरादे लिए मन में कुछ पाने की चाह लिए हम सजे-संवरे निकल पड़े राहों में कितने मोड़ पड़े हर मोड़ पे एक तजुर्बा नया जीवन का देखा रूप नया जीना उतना नहीं है सरल पग-पग पीते यहाँ लोग गरल कोई भी राह आसान नहीं विषधरों की कोई पहचान नहीं फिर भी बढ़ना स्वभाव मेरा मंज़िल पाना है स्वप्न मेरा चुनौतियों से लड़ती रही हिम्मत से आगे बढ़ती गई काँटे अधिक फूल कम मिले खुशियों से ज्यादा गम मिले पर मनोबल नहीं टूटने दिया जलता रहा आँधियों में दिया मजबूत इरादों से अपने किया रोशन नाम जग में अपना

#आँधियो #कविता  चट्टानों से अटल इरादे लिए
मन में कुछ पाने की चाह लिए
हम सजे-संवरे निकल पड़े
राहों में कितने मोड़ पड़े
हर मोड़ पे एक तजुर्बा नया
जीवन का देखा रूप नया
जीना उतना नहीं है सरल
पग-पग पीते यहाँ लोग गरल
कोई भी राह आसान नहीं
विषधरों की कोई पहचान नहीं
फिर भी बढ़ना स्वभाव मेरा
मंज़िल पाना है स्वप्न मेरा
चुनौतियों से लड़ती रही
हिम्मत से आगे बढ़ती गई
काँटे अधिक फूल कम मिले
खुशियों से ज्यादा गम मिले
पर मनोबल नहीं टूटने दिया
जलता रहा आँधियों में दिया
मजबूत इरादों से अपने
किया रोशन नाम जग में अपना

#आँधियो में दिया

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नहीं भूल पाते तेरी खुली आँखो का दर्द अस्पताल में मशीनों से घिरा तेरा बदन चेहरे पे उमड़ती बिछुड़ने की पीड़ा हम सबकी उम्मीद ने दामन छोड़ा जीवन की डोर पल-पल टूटती थी साँस तेरे तन से नाता तोड़ती थी नहीं भूलता है आँखों से वो मंजर किस्मत ने जड़ा मेरी पीठ में वो खंजर अभी-भी यह एहसास है तुम यहीं हो नहीं भूल पाते हम तेरा मुस्कुराना वो पीछे से आकर सिर पर चपत लगाना राखी के पर्व सबसे पहले राखी बंधवाना पैर छूने के बहाने धीरे-से नोंच जाना तिरछी हँसी, चेहरे का भोलापन मेरी नाराज़गी को मिटा देता पल में सोचती जब भी मैं अकेली होकर किस बात की सजा मिली तुम्हें खोकर त्यौहार पर अब नहीं रहा फोन का इंतजार घंटी बजते ही आता मन में तेरा ख्याल फोन नंबर, फेसबुक पर अब भी जुड़े हो पर असलियत में पहुँच से दूर हो कैसे जी रही हूँ यह मैं जानती हूँ इस कटु सत्य को नहीं स्वीकार पाती हूँ

#मुस्कुराना #तेरा  नहीं भूल पाते तेरी खुली आँखो का दर्द
अस्पताल में मशीनों से घिरा तेरा बदन
चेहरे पे उमड़ती बिछुड़ने की पीड़ा
हम सबकी उम्मीद ने दामन छोड़ा
जीवन की डोर पल-पल टूटती थी
साँस तेरे तन से नाता तोड़ती थी
नहीं भूलता है आँखों से वो मंजर
किस्मत ने जड़ा मेरी पीठ में वो खंजर
अभी-भी यह एहसास है तुम यहीं हो
नहीं भूल पाते हम तेरा मुस्कुराना
वो पीछे से आकर सिर पर चपत लगाना
राखी के पर्व सबसे पहले राखी बंधवाना
पैर छूने के बहाने धीरे-से नोंच जाना
तिरछी हँसी, चेहरे का भोलापन
मेरी नाराज़गी को मिटा देता पल में
सोचती जब भी मैं अकेली होकर
किस बात की सजा मिली तुम्हें खोकर
त्यौहार पर अब नहीं रहा फोन का इंतजार
घंटी बजते ही आता मन में तेरा ख्याल
फोन नंबर, फेसबुक पर अब भी जुड़े हो
पर असलियत में पहुँच से दूर हो
कैसे जी रही हूँ यह मैं जानती हूँ
इस कटु सत्य को नहीं स्वीकार पाती हूँ
#तस्वीर #दिल #बसी

#दिल में #बसी #तस्वीर तेरी

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