"साँझ सांझ ढल रही है लेकर रौनकें सारी,
बहार सिमट रही है तम हो रहा है हावी,
आशा के फूल झरकर धरा पे बिखर गए हैं,
घर लौट रहें हैं पंछी मेरे घर में है वीरानी।"
साँझ सांझ ढल रही है लेकर रौनकें सारी,
बहार सिमट रही है तम हो रहा है हावी,
आशा के फूल झरकर धरा पे बिखर गए हैं,
घर लौट रहें हैं पंछी मेरे घर में है वीरानी।