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ये जो बात-बात पर कहते हो, ज़माना क्या है?
मैं मर्द हूँ, इंसान हूँ, आदमी, तो ज़नाना क्या है?
तुम, मुफ़्लिसी भूल गए हो! बड़ी बात है अच्छी।
फिर ये हर किसी को ठगना, और रिझाना क्या है?
मोहब्बत है तुम्हें इल्म है तो फिर मानते क्यों नहीं?
इज़हार, इक़रार, इंकार, तकरार और ये मनाना क्या है?
तुम तो हो इक रहगुज़र, वाबस्ता हर इक रास्ते से
राब्ता है किसी से तो कहो तुम्हारा ठिकाना क्या है?
छुपे छुपे से फिरते हो क्यों तुम हर किसी से आजकल
"अना" की फ़कत तस्कीन करना है दिखाना क्या है?
मेरी नज़र में तुम हो, तुम्हारी नज़र में हम हैं सब
क़ल्ब-ए-ज़ात का ये नया उल्फ़त का तराना क्या है?
©Ana
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