Abhishek 'रैबारि' Gairola

Abhishek 'रैबारि' Gairola

insta: @gairo0 मै कोई महत्वपूर्ण या क्रांतिकारी संदेश नहीं मां के कानो को राहत देने वाली बेटे की आवाज़ हूं, प्रेमिका के आंखों को ठंडक देने वाली चिट्ठी की बात हूं, पिता का सीना चौड़ा करने वाली ख़बर का अख़बार हूं, तख़ल्लुस से रैबारि, दिलों तक पहुंचने वाला रैबार हूं। (रैबारि माने messenger)

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 White ये स्याह दिन है कोई, कि है चढ़ती रात क्या जाने,

फिसल न जाए होठों से दिल की बात क्या जाने,

कोई ठग है बेरी, ये मौसम आशिका़ना न समझना

कैसे सम्हालूंगा मेरे मचलते ये ख़्यालात क्या जाने।

©Abhishek 'रैबारि' Gairola

#शायरी

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 ब्याल राति क्य बतौं, मैतें घड़ैक भी निंद नि ए,
भों कथा छुईं छें रिंगणि मुंड मा पर रिंग नि ए। 
न सुपिन्यु छो, न बैम छो कुई, स्या त बल कल्पना छे मेरी  
छा एक बिस्तरा मां थर्पयां द्वि लोकलाजे कैतें बींग नि ए।

यखुलि-यखुलि ज्यु मा हे कनि छिड़बिड़ाट छे मचणि,
जन सूखा डाँडौं मा आछारियों के टोलि ह्वोलि नचणि। 
प्रीत कि आग, जुवानि कु ताप इन चढ़्यूँ छो सरील मा 
कैं रमता औजि कि हुड़कि मंडाण सी पैलि ह्वोलि जन तचणि ।

कन निर्भगि तीस छें जगीं, जु पाणि पैण सि भी नि बुझै
हे ब्वै कन जरु ह्वे सची, लग्यूँ छो बड़ड़ाण पर बात इखि
जैका सुनपट्या बोल न सुणदा बणि, न बींगदा बणि, 
डौर बैठ गे गौं मा कि कुई मसाण त नि लगि ये पर कखि।

वीं कि खुद छें भारी सताणि पर गौला मा इक बडुलि नि ए।
खीसा मा चित्र नि छो कुई फेर भी आँख्यों मा तसवीर धुंधलि किलै नि ए। 
जु छा लोग राति–दिन अपणि माया तें जगणा, अर बाटु हिरणा, 
कुभग्यान ह्वोलु जु यूँ तें भट्यालु “हे घौर ऐजा, स्या आज भी नि ए”।

कु जाणि कबरि भेंट ह्वोलि, कु जाणि कब दर्शन ह्वोला, 
ह्वेगि रुमक, रविराज भी सै गिनि, चखुला घौर जबरी आला। 
बदन मा थकान ह्वे अर जिकुड़ि मा थतराट, 
आँखा गर्रा छा, अर मन मा छें ह्वोणि घबराट,
लमडे ग्यों हाथ-गौणा छोड़िक भ्वें मा, 
ह्वेगि छो यु दिन भी ब्यालि जन बरबाद,
कु बोल्दु जगदि आँख्यों मा सुपन्या बिंडि नि ए,
अर ब्याल राते जन ईं रात भी मैतें निंद नि ए।

©Abhishek 'रैबारि' Gairola

अनिंद ब्याल राति क्य बतौं, मैतें घड़ैक भी निंद नि ए, भों कथा छुईं छें रिंगणि मुंड मा पर रिंग नि ए।  न सुपिन्यु छो, न बैम छो कुई, स्या त बल कल्पना छे मेरी   छा एक बिस्तरा मां थर्पयां द्वि लोकलाजे कैतें बींग नि ए। यखुलि-यखुलि ज्यु मा हे कनि छिड़बिड़ाट छे मचणि,

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 गुमगांव था उस शहर का नाम जहाँ मेरा कारवां कुछ देर रुका, उसी गुमगांव में गुमनाम यादों को गुमशुदा सा तलाश रहा हूं।

©Abhishek 'रैबारि' Gairola

गुमगांव था उस शहर का नाम जहाँ मेरा कारवां कुछ देर रुका, उसी गुमगांव में गुमनाम यादों को गुमशुदा सा तलाश रहा हूं। ।। #love #life #nojotohindi #कविता #शायरी #poem #poetry #shayari

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 प्रकृति भी अद्भुत है। एक ऐसा स्थान जहां कंक्रीट के जंगल बसे हुए हैं, जहां प्रकृति को योग्य श्रद्धा नहीं मिलती, जहां हम इस पौराणिक और मूलभूत शक्ति से अनभिज्ञ हैं, जहां डांबर के पथ पर बख़्तर के अश्व दौड़ते हैं, जहां सूर्यास्त होने के बाद भी चौंधियाने वाला प्रकाश मौजूद रहता है, वहीं यह महान शक्ति हमें अथम कर मितव्ययिती प्रदान करती है।

©Abhishek 'रैबारि' Gairola

प्रकृति भी अद्भुत है। एक ऐसा स्थान जहां कंक्रीट के जंगल बसे हुए हैं, जहां प्रकृति को योग्य श्रद्धा नहीं मिलती, जहां हम इस पौराणिक और मूलभूत शक्ति से अनभिज्ञ हैं, जहां डांबर के पथ पर बख़्तर के अश्व दौड़ते हैं, जहां सूर्यास्त होने के बाद भी चौंधियाने वाला प्रकाश मौजूद रहता है, वहीं यह महान शक्ति हमें अथम कर मितव्ययिती प्रदान करती है। ।। #runaway #love #life #nature #poem #nojotohindi #कविता #विचार

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कभी कभी मनुष्य को अपने आदिम युग को याद करना चाहिए, जब उसके पास नाम मात्र के संसाधन, सेवन हेतु मिट्टी से उपजा अन्न, पशु, बस यही सब थे। आवास रहित वह एक ठिकाने से दूसरे ठिकाने को भटकता रहता था। अपने छोटे से झुंड के साथ जिसे वह परिवार कहता था। अधिकतर परिस्थितियों में वह और उसका यह झुंड इस खानाबदोश यात्रा को पूरा भी नहीं कर पाता था। कभी प्रकृति, कभी बीमारी, कभी भूख या कभी किसी परभक्षी को अपना घुमतु जीवन सौंप आता था। फिर भी झेलने की क्षमता और प्रायोगिक नवीनता के दम पर आज, वह अपनी उस आदिम स्वयं से इतनी दूर आ गया है की उसे लगभग भूल ही गया है। पर जब वह किसी पर्वत के शिखर पर या उसकी वादी में उतर कर आकाश को निहारता है तब उसे अपने उस आदिम स्वयं का बोध होता है। इन पाशणों के बीच तब शायद वह नग्न, शुद्ध, और ईश्वर के निकट महसूस करता है। ©Abhishek 'रैबारि' Gairola

#कविता #शायरी #विचार #nojotohindi #writing  कभी कभी मनुष्य को अपने आदिम युग को याद करना चाहिए, जब उसके पास नाम मात्र के संसाधन, सेवन हेतु मिट्टी से उपजा अन्न, पशु, बस यही सब थे। आवास रहित वह एक ठिकाने से दूसरे ठिकाने को भटकता रहता था। अपने छोटे से झुंड के साथ जिसे वह परिवार कहता था। अधिकतर परिस्थितियों में वह और उसका यह झुंड इस खानाबदोश यात्रा को पूरा भी नहीं कर पाता था। कभी प्रकृति, कभी बीमारी, कभी भूख या कभी किसी परभक्षी को अपना घुमतु जीवन सौंप आता था। फिर भी झेलने की क्षमता और प्रायोगिक नवीनता के दम पर आज, वह अपनी उस आदिम स्वयं से इतनी दूर आ गया है की उसे लगभग भूल ही गया है। पर जब वह किसी पर्वत के शिखर पर या उसकी वादी में उतर कर आकाश को निहारता है तब उसे अपने उस आदिम स्वयं का बोध होता है। इन पाशणों के बीच तब शायद वह नग्न, शुद्ध, और ईश्वर के निकट महसूस करता है।

©Abhishek 'रैबारि' Gairola

कभी कभी मनुष्य को अपने आदिम युग को याद करना चाहिए, जब उसके पास नाम मात्र के संसाधन, सेवन हेतु मिट्टी से उपजा अन्न, पशु, बस यही सब थे। आवास रहित वह एक ठिकाने से दूसरे ठिकाने को भटकता रहता था। अपने छोटे से झुंड के साथ जिसे वह परिवार कहता था। अधिकतर परिस्थितियों में वह और उसका यह झुंड इस खानाबदोश यात्रा को पूरा भी नहीं कर पाता था। कभी प्रकृति, कभी बीमारी, कभी भूख या कभी किसी परभक्षी को अपना घुमतु जीवन सौंप आता था। फिर भी झेलने की क्षमता और प्रायोगिक नवीनता के दम पर आज, वह अपनी उस आदिम स्वयं से इतनी

13 Love

 ज़ाहिद हैं फिर भी मुझको लुफ़्त परस्त जाने क्यों बता रखे हैं। शायद इसलिए के दिल ओ दिमाग की तंग फिज़ा में आप बसा रखे हैं।

तो रेत क्यों दूं उंगलियों के ऊबड़ खाबड़ नाख़ूनों को
पेशानी पर नसीब की रेखाएं इनसे ही तो गुदवा रखे हैं। 

बाहर की फ़जा-ए-माहौल का इल्म नहीं है क़ैद में मुझे कतई 
तूफ़ानी रातों में भी दहलीज पर उम्मीद -ए -दिये जला रखे हैं।

लंबा है रास्ता-ए-सेहरा मगर मंजिल-ए-नख़लिस्तान साफ़ है। मृगतृष्णा बोल- बोल कर सीधी राहों पर भी मोड़ बिठा रखे हैं।

दिल दबा है, दिमाग रला है, रूह विकृत और दरदरी हो गई हैं क्या जाने बेचारी ने कितने युगों से करोड़ों जन्म भिड़ा रखे हैं।

©Abhishek 'रैबारि' Gairola

ज़ाहिद हैं फिर भी मुझको लुफ़्त परस्त जाने क्यों बता रखे हैं। शायद इसलिए के दिल ओ दिमाग की तंग फिज़ा में आप बसा रखे हैं। तो रेत क्यों दूं उंगलियों के ऊबड़ खाबड़ नाख़ूनों को पेशानी पर नसीब की रेखाएं इनसे ही तो गुदवा रखे हैं। बाहर की फ़जा-ए-माहौल का इल्म नहीं है क़ैद में मुझे कतई तूफ़ानी रातों में भी दहलीज पर उम्मीद -ए -दिये जला रखे हैं।

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