a-person-standing-on-a-beach-at-sunset मैं निकलना चाहती हू।
भोर के अंधेरे में ।
घर से अकेले।
चलना चाहती हूँ। आहिस्ता-आहिस्ता।
सुनना चाहती हूँ,
पक्षियों के कलरव-गान।
महसूस करना चाहती हूँ,
खुद को दिया सम्मान।
गुजारना चाहती हूँ कुछ-पल , जिनसे बढ़े मेरा आत्म-बल।
चाहती हूँ, ठंडी हवा का स्पर्श
जिनसे छू हो जाए मन का संघर्ष।
कुछ घाव अपनों के दिये होते हैं।
जिन्हे हम ताउम्र साथ लिये चलते हैं
मन की आस और उम्मीद छोड़,
कर्तव्य-पथ पर चलने की होड़।
©Alpita MishraSiwan Bihar
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here