घर का मुखिया
घर का मुखिया अक्सर घर की, मर्यादा में रह जाता हैं।
घर में सबकी सुनते-सुनते, अपनी कहता रह जाता हैं।।
अक्सर खुद को आगे करके, जो सारा बीड़ा लेता है।
जिसके मन में जोड़ भरा हो, तोड़ उसे पीड़ा देता है।।
सर्दी, गर्मी, बारिश में जो, डटकर सदा खड़ा रहता है।
उसका खुद का दर्द हमेशा, अंदर कहीँ पड़ा रहता है।।
अंदर - अंदर चीख रही पर, बाहर लगता खेल रही है।
कौन समझता है धरती को, कितनी पीड़ा झेल रही है।।
हरा - भरा जो वृक्ष सदा से, फल, छाया देता आता है।
टहनी सूखी हो जाने पर, जलने को काटा जाता है।।
बोझ उठा लेने वाले पर, बोझ अधिक डाला जाता है।
सदा सहज ढल जाने वाला, जगह-जगह ढाला जाता है।।
रीत जगत की ऐसी ही है, जो जितना करता जाता है।
वही अंत में उम्मीदों के, खंडन से मरता जाता है।।
............कौशल तिवारी
.
.
©Kaushal Kumar
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here