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निष्ठा परिहार

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#हिंदीदिवस #कविता #BoloAazadi

कुछ पंक्ति लिखनी चाही है, आवाज उठानी चाही है, छिटकी एक चिंगारी को, आग बनानी चाही है, जो कांट रहे वृक्षो को , उनको राज बतानी चाही है, फिर से वसुधा को हरियाली की चादर देनी चाही है।2 वह छाया तुमको कड़े धूप से , फिर ना कभी बचाएगी, वह कोयल तुमको मीठे स्वर के, गान न फिर सुनाएगी, वह फल तुमको एक स्वाद भरा, संसार न फिर दे पाएंगे, जरा सोचो बिन हवाओं के, हम स्वास कहाँ ले पाएंगे, वर्षा की रिमझिम बूंदे, जब तुमको नही सताएगी , पर दिनकर की वे किरणे , हर लम्हें पर तड़पायेगी, जब बंजर धरती पे , ममता के अन्न न उग पाएंगे, जरा सोचो ऐसे में , हम जीवन कहाँ बिताएंगे , एक नासमझी में पृथ्वी का, संसार बिगड़ भी सकता है, और कुछ करने से अपना , ये संसार संवर भी सकता है, अपने संग के लोगो को , ये राज बतानी चाही है, वृक्षों के जीवन की वह , सौगात बतानी चाही है, वक़्त रहते वक़्त का , जुनून गर समझ गए, तो फिर वसुधा को हरियाली की चादर देनी चाही है।।।2 ©निष्ठा परिहार

#savetreesavelife #कविता #Nature  कुछ पंक्ति लिखनी चाही है, 
                      आवाज उठानी चाही है,
छिटकी एक चिंगारी को,
                         आग बनानी चाही है,
जो कांट रहे वृक्षो को ,
                       उनको राज बतानी चाही है,
फिर से वसुधा को हरियाली की चादर देनी चाही है।2
वह छाया तुमको कड़े धूप से ,
                     फिर ना कभी बचाएगी,
वह कोयल तुमको मीठे स्वर के,
                      गान न फिर सुनाएगी,
वह फल तुमको एक स्वाद भरा,
                    संसार न फिर दे पाएंगे,
जरा सोचो बिन हवाओं के,
                    हम स्वास कहाँ ले पाएंगे,
वर्षा की रिमझिम बूंदे,
                      जब तुमको नही सताएगी ,
पर दिनकर की वे किरणे ,
                      हर लम्हें पर तड़पायेगी,
जब बंजर धरती पे ,
                     ममता के अन्न न उग पाएंगे,
जरा सोचो ऐसे में ,
                      हम जीवन कहाँ बिताएंगे ,
एक नासमझी में पृथ्वी का,
                      संसार बिगड़ भी सकता है,
और कुछ करने से अपना ,
                     ये संसार संवर भी सकता है,
अपने संग के लोगो को ,
                    ये राज बतानी चाही है,
वृक्षों के जीवन की वह ,
                    सौगात बतानी चाही है,
वक़्त रहते वक़्त का ,
                    जुनून गर समझ गए,
तो फिर वसुधा को हरियाली की चादर देनी चाही है।।।2

©निष्ठा परिहार

शर्म भले गहना हो मेरा, त्याग मेरा हथियार है, जो कहते अबला नारी को , उनसे मेरा ये सवाल है, कुंती ने त्याग पुत्र, यशोदा ने ममता भी त्यागी है, राधारानी ने त्यागी , अपनी वो प्रेम कहानी है, सीता माँ ने त्यागा रघुकुल, जिस कुल की वो अधिकारी थी, संयम, धीरज का पाठ पढ़ाई , वो साधारण नारी थी, इतिहास के पन्ने-पन्ने में, नारी को पूजा करते है, यह है नारी की छवि देखो, जिनको हम अबला कहते है।। ©निष्ठा परिहार

#कविता #नारी #girl  शर्म भले गहना हो मेरा,
त्याग मेरा हथियार है,
जो कहते अबला नारी को ,
उनसे मेरा ये सवाल है,
कुंती ने त्याग पुत्र,
यशोदा ने ममता भी त्यागी है,
राधारानी ने त्यागी ,
अपनी वो प्रेम कहानी है,
सीता माँ ने त्यागा रघुकुल,
जिस कुल की वो अधिकारी थी,
संयम, धीरज का पाठ पढ़ाई ,
वो साधारण नारी थी,
इतिहास के पन्ने-पन्ने में,
नारी को पूजा करते है,
यह है नारी की छवि देखो,
जिनको हम अबला कहते है।।

©निष्ठा परिहार

#नारी शक्ति #girl

4 Love

सदियों से भारत भूमि को, हमने माता ही पुकारा है, दृणता,संयम, ममता, करुणा, सारा गुण इनसे आया है, इतिहास के पन्ने-पन्ने में, भारत को माता कहते है, यह है नारी की छवि देखो, जिनको हम अबला कहते हैं। जो है सादगी की मूरत, शौर्य जिसकी परिभाषा है, जिनके होने से जनभर में, वंशानुक्रम की आशा है, जिसके कुछ कहने से, भारत में, महाभारत संग्राम हुआ, जिसके चुप रहने , से रामायण का जन भर में नाम हुआ, जिसकी शौर्य शक्ति के आगे, अंग्रेजो के भाल झुके, जिसकी भक्ति के आगे, नारायण खुद भी भगवान हुए, जिसके प्रेम की छाया , निर्मल निश्छल बहती रहती है, जिसकी ममता बच्चों के, आने वाले दुख हर लेती है, जिसकी चंचलता घर के आंगन को, हर पल महकती है, जिसकी डोली हर आंगन को सूना-सूना कर जाती है, जो बांध रही संबंधों को, उनको रमणी भी कहते है, यह है नारी की छवि देखो, जिनको हम अबला कहते है। ©निष्ठा परिहार

#कविता #girl  सदियों से भारत भूमि को,
 हमने माता ही पुकारा है,
दृणता,संयम, ममता, करुणा,
सारा गुण इनसे आया है,
इतिहास के पन्ने-पन्ने में,
भारत को माता कहते है,
यह है नारी की छवि देखो,
 जिनको हम अबला कहते हैं।

जो है सादगी की मूरत,
शौर्य जिसकी परिभाषा है,
जिनके होने से जनभर में,
वंशानुक्रम की आशा है,
जिसके कुछ कहने से, 
भारत में, महाभारत संग्राम हुआ,
जिसके चुप रहने ,
से रामायण का जन भर में नाम हुआ,
जिसकी शौर्य शक्ति के आगे,
अंग्रेजो के भाल झुके,
जिसकी भक्ति के आगे,
नारायण खुद भी भगवान हुए,
जिसके प्रेम की छाया ,
निर्मल निश्छल बहती रहती है,
जिसकी ममता बच्चों के,
आने वाले दुख हर लेती है,
जिसकी चंचलता घर के आंगन को,
 हर पल महकती है,
जिसकी डोली हर आंगन को 
सूना-सूना कर जाती है,
जो बांध रही संबंधों को,
उनको रमणी भी कहते है,
यह है नारी की छवि देखो,
जिनको हम अबला कहते है।

©निष्ठा परिहार

नारी शक्ति #girl

3 Love

हम शहादत की इबादत करते हैं, जो करते है सरे आम करते है, छुपकर बैठना अपनी आदत नहीं, तो चलो..... तो चलो ,मुकम्मल हिंदुस्तान करते है। तो चलो मुकम्मल हिंदुस्तान करते है। शहीदों को आज भी मलाल होगा, आज भी माथा गुस्से से लाल होगा, जो देखा होगा सबने भारत का नजारा, शाहीद होने पर हर शख्श शर्मसार हुआ होगा, ये वो हिन्द नहीं , जिसपर गांधी नेहरू को कभी अभिमान था, ये हिन्द नहीं जिसके आगे बच्चा भी कभी कुर्बान था, लालच ईर्ष्या,द्वेष, द्वंद, अब ये हमारे गहने है, ध्यान रहे ये आज़ादी हम उधार ले पहने है, कर्ज है हमपे अरबो का , करते है सौदा खरबो का, गद्दी पर बैठे है पर हम शहंशाह नहीं, अब ये वो हिंदुस्तान नहीं।। ✍️निष्ठा,✍️ ©निष्ठा परिहार

#कविता  हम शहादत की इबादत करते हैं,
                         जो करते है सरे आम करते है,
छुपकर बैठना अपनी आदत नहीं,
                              तो चलो.....
तो चलो ,मुकम्मल हिंदुस्तान करते है।
तो चलो मुकम्मल हिंदुस्तान करते है।

शहीदों को आज भी मलाल होगा,
                        आज भी माथा गुस्से से लाल होगा,
जो देखा होगा सबने भारत का नजारा,
                     शाहीद होने पर हर शख्श शर्मसार हुआ होगा,
 ये वो हिन्द नहीं ,
                      जिसपर गांधी नेहरू को कभी अभिमान था,
ये हिन्द नहीं 
                      जिसके आगे बच्चा भी कभी कुर्बान था,
लालच ईर्ष्या,द्वेष, द्वंद, 
                       अब ये हमारे गहने है,
ध्यान रहे ये आज़ादी हम उधार ले पहने है,
                  कर्ज है हमपे अरबो का ,
करते है सौदा खरबो का,
                   गद्दी पर बैठे है पर हम शहंशाह नहीं,
अब ये वो हिंदुस्तान नहीं।।
              
                                           
                     ✍️निष्ठा,✍️

©निष्ठा परिहार

देशभक्ति

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#कविता #Januarycreators

अब ये वो हिन्दुतान नहीं #Januarycreators

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