गणेश शर्मा 'विद्यार्थी'

गणेश शर्मा 'विद्यार्थी'

स्वच्छन्द कवि हिंदी का अध्यापक हूँ और विद्यार्थी भी🙏

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Jai Shri Ram जग में जब ये रिपु नाश करें, तब ही रिपुसूदन नाम धरो। धरिणी धर शीश सदा रहते, अवतारण शेष सकाम करो। जग पालक भद्र रखे पदत्राण सिंहासन ही सुखधाम भरो। सुर,शंकर,सन्त,व्रती प्रिय, दास गणेश व्यथा प्रभु राम हरो। ©गणेश शर्मा 'विद्यार्थी'

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तब ही रिपुसूदन नाम धरो।

धरिणी धर शीश सदा रहते,
अवतारण शेष सकाम करो।

जग पालक भद्र रखे पदत्राण
सिंहासन ही सुखधाम भरो।

सुर,शंकर,सन्त,व्रती प्रिय,
दास गणेश व्यथा प्रभु राम हरो।

©गणेश शर्मा 'विद्यार्थी'

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12 Love

sunset nature नव सृजन करो हे कविकुल! नवयुग निर्माण करो तुम। परिवर्तन की बेला है, स्वर में हुंकार भरो तुम। तुम अग्रदूत संसृति के, किञ्चित पथभ्रष्ट न होना। प्रस्थान हेतु तत्पर हो, कवितारोहण कर दो ना। जब तक रवि-शशि अम्बर में, कविता मन शुद्ध चलेगा। अविवेकी का मेधा से, आजीवन युद्ध चलेगा। पग-पग पर प्रतिपल पंथी, शत-शत अवरोध मिलेंगे। इस कविता की यात्रा में, प्रतिदिवस विरोध मिलेंगे। पर तुम भयभीत न होना, अपना कविकर्म निभाना। इस कलम शक्ति के द्वारा, नवयुग आरेख बनाना। उसमें फिर शुभ शुचिता की, कूँची से रंग भरेंगे। चिर कलित भाव को लेकर, शब्दों के संग झरेंगे। निर्जीव सजीवन होंगे, फिर हृदय-पटल खोलेंगे। इन कवितावलियों के भी, रव अमरचित्र बोलेंगे। नैराश्य न स्पर्श करेगा, माँ वाणी के प्रति सुत को। आशा के दीपक जलते, तम में कविता-संयुत को। ©गणेश शर्मा 'विद्यार्थी'

#कविता #hindikavita #hindipoetry #HindiPoem #kavita  sunset nature नव सृजन करो हे कविकुल!
नवयुग निर्माण करो तुम।
परिवर्तन की बेला है,
स्वर में हुंकार भरो तुम।
                                      तुम अग्रदूत संसृति के,
                                      किञ्चित पथभ्रष्ट न होना।
                                      प्रस्थान हेतु तत्पर हो,
                                      कवितारोहण कर दो ना।
जब तक रवि-शशि अम्बर में,
कविता मन शुद्ध चलेगा।
अविवेकी का मेधा से,
आजीवन युद्ध चलेगा।
                                      पग-पग पर प्रतिपल पंथी,
                                      शत-शत अवरोध मिलेंगे।
                                      इस कविता की यात्रा में,
                                      प्रतिदिवस विरोध मिलेंगे।
पर तुम भयभीत न होना,
अपना कविकर्म निभाना।
इस कलम शक्ति के द्वारा,
नवयुग आरेख बनाना।
                                       उसमें फिर शुभ शुचिता की,
                                       कूँची से रंग भरेंगे।
                                       चिर कलित भाव को लेकर,
                                       शब्दों के संग झरेंगे।
निर्जीव सजीवन होंगे,
फिर हृदय-पटल खोलेंगे।
इन कवितावलियों के भी,
रव अमरचित्र बोलेंगे।
                                       नैराश्य न स्पर्श करेगा,
                                       माँ वाणी के प्रति सुत को।
                                       आशा के दीपक जलते,
                                       तम में कविता-संयुत को।

©गणेश शर्मा 'विद्यार्थी'

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9 Love

घुट-घुटकर यूँ तो रोज, हमी जीते हैं। बस बहुत हो चुका, चलो चाय पीते हैं।। जीवन में मुश्किल रोज, नयी आती हैं। नदियाँ भी तट पर मैल, बहा लाती हैं। दिन भर दिमाग में ऊँच-नीच चलती है। दुनिया की तब हर एक बात खलती है। ऐसे ही कितने साल यहाँ बीते हैं। बस बहुत हो चुका, चलो चाय पीते हैं।। अदरक-इलायची संगति कर दी जाती। जब गर्म चाय कुल्लड़ में भर दी जाती। कर देता है मदहोश चाय का प्याला। न्यौछावर इस पर कई-कई मधुशाला। यूँ ही हम छोटे - बड़े घाव सीते हैं। बस बहुत हो चुका, चलो चाय पीते हैं। इससे बढ़कर फल, फूल, नहीं मेवा है। इससे बढ़कर दूसरी नहीं सेवा है। इससे बढ़कर के पुण्य नहीं दूजा है। इससे बढ़कर कुछ अन्य नहीं पूजा है। क्यों अब तक सबके चाय-पात्र रीते हैं? बस बहुत हो चुका, चलो चाय पीते हैं।। ©गणेश शर्मा 'विद्यार्थी'

#कविता #hindikavita #hindipoetry #HindiPoem #Tea  घुट-घुटकर यूँ तो रोज, हमी जीते हैं।
बस बहुत हो चुका, चलो चाय पीते हैं।।

          जीवन में मुश्किल रोज, नयी आती हैं।
           नदियाँ भी तट पर मैल, बहा लाती हैं।
             दिन भर दिमाग में ऊँच-नीच चलती है।
             दुनिया की तब हर एक बात खलती है।
          ऐसे  ही  कितने  साल  यहाँ  बीते हैं।
              बस बहुत हो चुका, चलो चाय पीते हैं।।

अदरक-इलायची संगति कर दी जाती।
जब गर्म चाय कुल्लड़ में भर दी जाती।
कर देता है मदहोश  चाय का प्याला।
न्यौछावर इस पर  कई-कई मधुशाला।
यूँ ही  हम  छोटे - बड़े  घाव  सीते हैं।
बस बहुत हो चुका, चलो चाय पीते हैं।

             इससे बढ़कर फल, फूल, नहीं मेवा है।
             इससे   बढ़कर  दूसरी   नहीं  सेवा  है।
             इससे  बढ़कर  के  पुण्य  नहीं दूजा है।
            इससे बढ़कर कुछ अन्य नहीं पूजा है।
              क्यों अब तक सबके चाय-पात्र रीते हैं?
              बस बहुत हो चुका, चलो चाय पीते हैं।।

©गणेश शर्मा 'विद्यार्थी'

चलो चाय पीते हैं!!! #Tea #HindiPoem #hindipoetry #hindikavita कविताएं कविता हिंदी कविता

15 Love

writing quotes in hindi मृदु रम्य सुपावन-सी कविता। झर में शुचि चन्दन-सी कविता। हियँ में मनभावन-सी कविता। मरु में सरसावन-सी कविता।। रण में विकराल अनी कविता। भय में जयघोष बनी कविता। कवि के रस की जननी कविता। अति चारु लगे अपनी कविता।। सुखदायक बोधमयी कविता। जग में चिर कालजयी कविता। रघुनाथ सदा तुलसी कविता। अनुशासन से हुलसी कविता।। कुसुमाकर शुभ्र कली कविता। कलियों पर मुग्ध अली कविता। ब्रज की हर कुंज गली कविता। हरि को वृषभानु लली कविता।। घनश्याम महाछवि है कविता। तम नाशन को रवि है कविता। सुर की सरि-सी पवि है कविता। युगबोध लिए कवि है कविता।। :- गणेश शर्मा 'विद्यार्थी' ©गणेश

#कविता #hindi_poetry #hindikavita #HindiPoem #kavita  writing quotes in hindi 
मृदु रम्य सुपावन-सी कविता।
झर में शुचि चन्दन-सी कविता।
हियँ में मनभावन-सी कविता।
मरु में सरसावन-सी कविता।।

                रण में विकराल अनी कविता।
                भय में जयघोष बनी कविता।
                 कवि के रस की जननी कविता।
                 अति चारु लगे अपनी कविता।।

सुखदायक बोधमयी कविता।
जग में चिर कालजयी कविता।
रघुनाथ सदा तुलसी कविता।
अनुशासन से हुलसी कविता।।

              कुसुमाकर शुभ्र कली कविता।
               कलियों पर मुग्ध अली कविता।
               ब्रज की हर कुंज गली कविता।
                हरि को वृषभानु लली कविता।।

घनश्याम महाछवि है कविता।
तम नाशन को रवि है कविता।
सुर की सरि-सी पवि है कविता।
युगबोध लिए कवि है कविता।।

:- गणेश शर्मा 'विद्यार्थी'

©गणेश

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12 Love

रेल की पटरियों जैसे हम और तुम, हैं भले दूर पर, साथ चलना हमें। प्रेम के होम में सूखी समिधा-सा मैं, और घृत जैसी तुम, साथ जलना हमें। :- गणेश शर्मा 'विद्यार्थी' ©गणेश

#पंक्तियाँ #कविता  रेल की पटरियों जैसे हम और तुम,
हैं भले दूर पर, साथ चलना हमें।
प्रेम के होम में सूखी समिधा-सा मैं,
और घृत जैसी तुम, साथ जलना हमें।

:- गणेश शर्मा 'विद्यार्थी'

©गणेश

साँझ का अरुणिम स्वर्ण-प्रकाश, क्षितिज का विस्तृत ललित ललाट। लगे गोरोचन सदृश सुरम्य, सुशोभित सूर्यदेव विभ्राट।। अधर में देवापगा महान, धवल जल की चंचल कल्लोल। लगे ज्यौं कंचन का शुभ चूर्ण, दिया चाँदी के रस में घोल।। :- ✍️ गणेश शर्मा 'विद्यार्थी' ©गणेश

 साँझ का अरुणिम स्वर्ण-प्रकाश,
क्षितिज का विस्तृत ललित ललाट।
लगे गोरोचन सदृश सुरम्य,
सुशोभित सूर्यदेव विभ्राट।।

अधर में देवापगा महान,
धवल जल की चंचल कल्लोल।
लगे ज्यौं कंचन का शुभ चूर्ण,
दिया चाँदी के रस में घोल।।

:- ✍️ गणेश शर्मा 'विद्यार्थी'

©गणेश

साँझ का अरुणिम स्वर्ण-प्रकाश, क्षितिज का विस्तृत ललित ललाट। लगे गोरोचन सदृश सुरम्य, सुशोभित सूर्यदेव विभ्राट।। अधर में देवापगा महान, धवल जल की चंचल कल्लोल। लगे ज्यौं कंचन का शुभ चूर्ण, दिया चाँदी के रस में घोल।। :- ✍️ गणेश शर्मा 'विद्यार्थी' ©गणेश

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