sunset nature नव सृजन करो हे कविकुल!
नवयुग निर्माण करो तुम।
परिवर्तन की बेला है,
स्वर में हुंकार भरो तुम।
तुम अग्रदूत संसृति के,
किञ्चित पथभ्रष्ट न होना।
प्रस्थान हेतु तत्पर हो,
कवितारोहण कर दो ना।
जब तक रवि-शशि अम्बर में,
कविता मन शुद्ध चलेगा।
अविवेकी का मेधा से,
आजीवन युद्ध चलेगा।
पग-पग पर प्रतिपल पंथी,
शत-शत अवरोध मिलेंगे।
इस कविता की यात्रा में,
प्रतिदिवस विरोध मिलेंगे।
पर तुम भयभीत न होना,
अपना कविकर्म निभाना।
इस कलम शक्ति के द्वारा,
नवयुग आरेख बनाना।
उसमें फिर शुभ शुचिता की,
कूँची से रंग भरेंगे।
चिर कलित भाव को लेकर,
शब्दों के संग झरेंगे।
निर्जीव सजीवन होंगे,
फिर हृदय-पटल खोलेंगे।
इन कवितावलियों के भी,
रव अमरचित्र बोलेंगे।
नैराश्य न स्पर्श करेगा,
माँ वाणी के प्रति सुत को।
आशा के दीपक जलते,
तम में कविता-संयुत को।
©गणेश शर्मा 'विद्यार्थी'
नवसृजन करो हे कविकुल!
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