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Head of department(management) in Mahatma Gandhi Universe Institute (7668974957).
Virat Mishra
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तुम क्या जानो मन पर इतना बोझा कैसे ढो लेते हैं जब एकांत समय मिलता है चुपके चुपके रो लेते हैं, मेरी आँख बहुत छोटी थी तुमने सपने बड़े दिखाए , अब आँखों में राजमहल ले फुटपाथों पर सो लेते हैं। पागल है पपिहा वर्षों से स्वाति बूँद पर भटक रहा, चतुर वही हैं हाथ जो हर बहती गंगा में धो लेते हैं हम किसान के बेटे साहब दुःख सह लेने की आदत है, हम भूखे रहकर भी जग की ख़ातिर फ़सलें बो लेते हैं मोम कह रहा था वह ख़ुद को पत्थर था पत्थर निकला, समझ न आया पत्थर कैसे मोम सरीखे हो लेते हैं। ©Virat Mishra
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हाँ उसी मोहब्बत से फ़िर से गुनगुना है। ये ग़ज़ल पुरानी है,गीत भी पुराना है। बात वात ना हो तो,साथ छूट जाते हैं। यार, ये हमे अपने यार को बताना है। आ रहा है वो मिलने,कितने काम बाकी हैं। आइना भी क्या देखूं, घर भी तो सजाना है। पूछ के भी क्या होगा,देर क्यों हुई उसको। झूँठ तो पुराना है बस नया बहाना है। ❣️ ©Virat Mishra
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I'm Always with you As ©Virat Mishra
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Alone माटी की काया में तूने क्यों मगरूरियत को बोया है...... बावले,बबूल की खेती में सदा बबूल ही होया है..... हजार मर्तबा कहा देख श्मशान में आदमी अकेला ही सोया है... तन की चमक दमक में पागल हुआ मन का मेल ना धोया है.... देखा है गुजर जाने के बाद इस जमाने में किसने कितना रोया है.... ए नादां वक्त रहते संभल जा क्यूं मगरूरियत में खोया है...... सब धरा का धरा पर धरा रह जाएगा बता किसने आज तक कितना ढोया है ..... ©Virat Mishra
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