तुम्हारे जिस्मों का ख़ून सूख चुका है,
तुम्हारे अंदर कुछ टूट चुका है.
अब जाकर उठाया है किसी ने नींद से,
जब मेरा स्टेशन पीछे छूट चुका है.
मैं क्या हुआ जो मनाने में माहिर,
हर शख़्स अब मुझसे रूठ चुका है.
मुझमें मत ढूंढों कोई ख़ज़ाना,
मुझे कोई पहले ही लूट चुका है.
- Ankit dhyani
©Ankit Dhyani
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