न जाने क्यूं तेरी यादों को हर रोज समेटता हूं
तुझे देखे बिना भी हर रोज तुझे देखता हूं
जब भी तुझे सोंचू,अपने अतीत और
तेरी यादों में खो सा जाता हूं...
तुझे न भी देखूं तो अब फर्क नहीं परता शायद,
क्यूंकि तुझे तो हर लम्हा जीता हूं...
हमे पता है, मैं भी कभी कभी तेरी आसुओं से छलकता हूं
मैं रहूं या ना रहूं तेरी हर सांसों में मैं ही तो धड़कता हूं...
ये फासले भी जरूरी हैं रिश्तों में, ये एहसास करता हूं
शायद यही वजह है कि वक्त बेवक्त तुम मुझमें और मैं तुझमें जीता हूं...
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