White ग़ुरबत में गुज़ारी हैं कई रातें हमने, तेरे पाने कि ज़िद को खाई है अनगिनत ठोकरें हमने
तेरी ख़ामोश लबों को हमने भी देखा आजकल,जिसे फिर से अल्फ़ाज़ देने को न जाने क्या क्या किया हमने
तेरे समर्पण कि क़दर कहाँ इस झूठी दिखावटी दुनिया को
उसे कहाँ पता कितना इंतज़ार किया है हमने
सिर्फ़ तुझे हासिल करना मकसद नहीं हमारा
इन जाहिलों को क्या पता तुमने क्या क्या किया है हमारे लिए
फ़र्क़ ओ फ़ासला कभी था ही नहीं हमारे बीच
इस दुनिया को कहाँ ज़ाहिर कि कितनी सिद्दत से रिश्तों को जिया है हमने
हमे नहीं शिकायत ग़ैरों से,यहाँ अपने ही बैठे हैं पहरे पे
पर उसे पता कहाँ किस मिट्टी से, बनाया है आशियाना हमने हमारे लिए…
…©️@P_प्रमोद
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