मुल्क़ का माहौल मेरे क़माल होता है
जब चुनाव की तारीख़ों का ऐलान होता है
होड़ लगती है मुफ़्त खोरी बढ़ाने की
जनता का अपना राजा हसीन होता है
काम से भला कभी कोई जीता है चुनाव
झूटे वादों का सिलसिला शुरू होता है
आरोप प्रत्यारोपों की कहानी शुरू होती है
शाम को एक ही थाली डिनर साथ होता है
सबको अपनी अपनी जाति महान लगती है
जाति का नेता ही बस ईमानदार होता है
कमल तुम न खोलो पोल इनकी इस क़दर
हर सच बोलने वाला गुनहगार होता है
©Kamal Kant
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