"White बिखरे हुए हैं जमीं पर बहुत से खिलौने
आती नहीं हया खेलते हुए खेल ये घिनौने
कितने लाडों से पाला था पापा ने मेरे
मां ने दुलारा था सांझ और सवेरे
आस्मां के तारों से जब भी पूछा था मैंने
हंसते हुए रूप को निखारा था उसने
चीखती आवाज कैसे फिर से दफन हो गई
रंग बिरंगों से थी फिर कफन हो गई
बढ़ने लगी दरिंदगी अब मौन हो गई
लेते थे नाम स्वयं अब तो कौन हो गई। ।
©Shilpa Yadav"