White बिखरे हुए हैं जमीं पर बहुत से खिलौने आती न | English Poetry

"White बिखरे हुए हैं जमीं पर बहुत से खिलौने आती नहीं हया खेलते हुए खेल ये घिनौने कितने लाडों से पाला था पापा ने मेरे मां ने दुलारा था सांझ और सवेरे आस्मां के तारों से जब भी पूछा था मैंने हंसते हुए रूप को निखारा था उसने चीखती आवाज कैसे फिर से दफन हो गई रंग बिरंगों से थी फिर कफन हो गई बढ़ने लगी दरिंदगी अब मौन हो गई लेते थे नाम स्वयं अब तो कौन हो गई। । ©Shilpa Yadav"

 White  बिखरे हुए हैं जमीं पर बहुत से खिलौने 
आती नहीं हया खेलते हुए खेल ये घिनौने

कितने लाडों से पाला था पापा ने मेरे
मां ने दुलारा था सांझ और सवेरे

आस्मां के तारों से जब भी पूछा था मैंने
हंसते हुए रूप को निखारा था उसने

चीखती आवाज कैसे फिर से दफन हो गई 
रंग बिरंगों से थी फिर कफन हो गई
 
बढ़ने लगी दरिंदगी अब मौन हो गई 
लेते थे नाम स्वयं अब तो कौन हो गई। ।

©Shilpa Yadav

White बिखरे हुए हैं जमीं पर बहुत से खिलौने आती नहीं हया खेलते हुए खेल ये घिनौने कितने लाडों से पाला था पापा ने मेरे मां ने दुलारा था सांझ और सवेरे आस्मां के तारों से जब भी पूछा था मैंने हंसते हुए रूप को निखारा था उसने चीखती आवाज कैसे फिर से दफन हो गई रंग बिरंगों से थी फिर कफन हो गई बढ़ने लगी दरिंदगी अब मौन हो गई लेते थे नाम स्वयं अब तो कौन हो गई। । ©Shilpa Yadav

#good_night #shilpayadavpoety# @R Ojha @ANOOP PANDEY @Neel @shivom upadhyay @Madhusudan Shrivastava

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