पता है कभी कभी न जैसे हम होते हैं वैसा लोगो को नही | हिंदी विचार

"पता है कभी कभी न जैसे हम होते हैं वैसा लोगो को नहीं दिखाते हैं। लेकिन जैसा हम लोगों को दिखाते हैं न वैसे बिल्कुल नहीं होते। हम समाज में रहकर सीखते हैं हमको क्या दिखाना चाहिए क्या नहीं। हम अपने व्यक्तिगत सुख को तो दिखाते हैं लेकिन दुख नहीं। हम अपना गुस्से वाला रूप दिखाते हैं , लेकिन हमारे अंदर का प्यार नहीं हम समाज को बताते हैं कि हम बेपरवाह हैं, लेकिन वास्तव में हमें परवाह होती है। हम कहते हैं कि हम मर्द हैं, लेकिन हमारे अंदर भी दर्द है। हम दुनिया के सामने बनते हैं बहुत गंभीर लेकिन हमारे पास होता है शान्त मन हम अपने शरीर को बताते हैं बहुत कठोर लेकिन हमारे पास होता है कोमल हृदय ©सत्यव्रत"

 पता है कभी कभी न जैसे हम होते हैं वैसा लोगो को नहीं दिखाते हैं।
लेकिन जैसा हम लोगों को दिखाते हैं न वैसे बिल्कुल नहीं होते।
हम समाज में रहकर सीखते हैं
हमको क्या दिखाना चाहिए क्या नहीं।
हम अपने व्यक्तिगत सुख को तो दिखाते हैं
लेकिन दुख नहीं।
हम अपना गुस्से वाला रूप दिखाते हैं ,
लेकिन हमारे अंदर का प्यार नहीं
हम समाज को बताते हैं कि हम बेपरवाह हैं,
लेकिन वास्तव में हमें परवाह होती है।
हम कहते हैं कि हम मर्द हैं,
लेकिन हमारे अंदर भी दर्द है।
हम दुनिया के सामने बनते हैं बहुत गंभीर
लेकिन हमारे पास होता है शान्त मन
हम अपने शरीर को बताते हैं  बहुत कठोर
लेकिन हमारे  पास होता है कोमल हृदय

©सत्यव्रत

पता है कभी कभी न जैसे हम होते हैं वैसा लोगो को नहीं दिखाते हैं। लेकिन जैसा हम लोगों को दिखाते हैं न वैसे बिल्कुल नहीं होते। हम समाज में रहकर सीखते हैं हमको क्या दिखाना चाहिए क्या नहीं। हम अपने व्यक्तिगत सुख को तो दिखाते हैं लेकिन दुख नहीं। हम अपना गुस्से वाला रूप दिखाते हैं , लेकिन हमारे अंदर का प्यार नहीं हम समाज को बताते हैं कि हम बेपरवाह हैं, लेकिन वास्तव में हमें परवाह होती है। हम कहते हैं कि हम मर्द हैं, लेकिन हमारे अंदर भी दर्द है। हम दुनिया के सामने बनते हैं बहुत गंभीर लेकिन हमारे पास होता है शान्त मन हम अपने शरीर को बताते हैं बहुत कठोर लेकिन हमारे पास होता है कोमल हृदय ©सत्यव्रत

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