चारु जी, आप अपने नाम के अर्थ को सार्थक करती नजर आ रही हैं।तन से चारु होना सामान्य बात है लेकिन मन और विचार का चारु होना दुर्लभ और कठिन है। उन दुर्लभ ईश्वर की रचनाओं में से आप एक नजर आ रही हैं। बड़ा भी सत्य और दिल छूने वाला विषय पर आपने बड़ा ही सुंदर और सटीक विचार रखा। भाषा को दो भागों में बांटा जा सकता है।एक जिसे बोल या लिखकर व्यक्त किया जाता है और दूसरा मूक या मौन भाषा जिसका तार मन,दिल और नैन से जुड़े होते हैं जो बिन बोले बहुत कुछ बयां कर जाता है। अच्छा लगा सुन कर प्रसन्नता हुई। ईश्वर खुश रखें।
सत्य का आभार से क्या लेना देना। जो आप हैं ,जो मुझे एहसास हुआ ,मैंने लिखा। आप हो उस काबिल। यही तो इंसान की धरोहर है।बाकी तो बेवफा हैं। आयेंगे,मिलेंगे ,स्वार्थ सिद्धि करेंगे, फिर निकल जायेंगे। दिल से दुआ है जहां भी रहें ईश्वर आप की मुस्कान को बनाए रखें। इसी तरह अच्छे विचार साझा करते रहें। मैं भी गीत ,गजल,भजन लिखता हूं लेकिन आप जैसा गहराई तक नहीं जा पता। मंद बुद्धि जो ठहरा। फिर मिलेंगे।
👌👌