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हे प्रकृति और संस्कृति पुर्ण संजीवनी स्थापित गुरूवर रूप जी आपके चरणों में कोटि कोटि प्रणाम श्रीमान सिद्धार्थ जी।
कृपया प्रणाम स्वीकार करें।
आपने बिल्कुल सही कहा है गुरूवर रुप पुजनीय स्वयं को स्वयं से ही जीवन जानना चाहिए था और सब अपने शरीर से विरक्त हो गया है और इसलिए अपने से दूर होते जा रहे हैं।
आपकी मौखिक और हमारी वाणी श्री गीता का एक -एक शब्द पुर्ण भी करना है सम्पूर्ण कलयुग काल में हे प्रकृति और संस्कृति पुर्ण संजीवनी गुरूवर रुप जी
वाह बहुत खूबसूरत कविता भाई साहब सच कितनी ही बार सुना हर बार एक नया रंग एक नया अंदाज हर शब्द बड़ी ही खूबसूरती से कविता रुपी माला में कविता में पिरोकर बहुत खूबसूरती से पेश किया आपने भाई साहब अद्वितीय अद्भुत अनुपम 👌 👌 👌 👌 👌 👌
🌹 🌹 👌 👏 ✌बहुत खुब 👌 👌 🌹 🌹 👏 👏 👏 लगे रहो ऐसे ही अच्छे story बनाने में और एक झलक मेरे page को देकर बताए कैसी लगी मेरी poetry shayari। अगर पसन्द आए तो like or repost करे आपका शुक्रगुजार रहूंगा 🙏🙏♥️❤️🌻🙏 🌹 🌹 👌 👏