सृजन जीव का ऐसे ही हो,अंकुर फिर पौधा नन्हा। संग-सं | English Poetry Vi

"सृजन जीव का ऐसे ही हो,अंकुर फिर पौधा नन्हा। संग-संग कोई बढ़ता या,चलना पड़ता हो तन्हा।। अर्थपूर्ण या अर्थहीन हो,निर्भर है व्यवहारों पे। बनेगा अमृत या विष होगा,निर्भर सभी आहारों पे।। ©Bharat Bhushan pathak "

सृजन जीव का ऐसे ही हो,अंकुर फिर पौधा नन्हा। संग-संग कोई बढ़ता या,चलना पड़ता हो तन्हा।। अर्थपूर्ण या अर्थहीन हो,निर्भर है व्यवहारों पे। बनेगा अमृत या विष होगा,निर्भर सभी आहारों पे।। ©Bharat Bhushan pathak

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सृजन जीव का ऐसे ही हो,अंकुर फिर पौधा नन्हा।
संग-संग कोई बढ़ता या,चलना पड़ता हो तन्हा।।
अर्थपूर्ण या अर्थहीन हो,निर्भर है व्यवहारों पे।
बनेगा अमृत या विष होगा,निर्भर सभी आहारों पे।।

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