Bharat Bhushan pathak

Bharat Bhushan pathak

एक कवि,कहानीकार व लेखक।मैं शब्दों को जीवन्त करने का प्रयत्न करता रहता हूँ।मुझे युट्यूब चैनल-varythe untold mystery पर देखा जा सकता है। आप मुझे मेरे ब्लॉग वेबसाईट https://kavitaonkiyatra68.blogspot.com पर भी पढ़ सकते हैं। अभी कुछ ही दिनों में मेरी अमेजाॅन किण्डल पर पुस्तक आने वाली है काव्यसमिधा। गुरुजन वहाँ मार्गदर्शन करेंगे और छंद विद्यार्थियों को मैं यदि कुछ समझाने में सक्षम हूँ तो वो भी उसे पढ़ सकते हैं। https://amzn.eu/d/c5AL3sX अब अमेजन पर काव्यसमिधा की पेपरबैक उपलब्ध https://www.flipkart.com/kavyasamidha-bharat-bhushan-pathak-hindi-2023-shopizen-in/p/itm8f1171430a814?pid=9789356005907&cmpid=product.share.pp&_refId=PP.b7d4d939-dd84-4325-b880-b677dc90a5ec.9789356005907&_appId=CL https://shopizen.app.link/U4pk3foz https://amzn.eu/d/c5AL3sX

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Jai Shri Ram निहाल हुई अयोध्या नगरी। सुन किलकारी त्रिभुवन सगरी।। ठुमक चले जब चारों भाई। मुदित हुई तब तीनों माई।। सुध-बुध खोए दशरथ राजा।कारज भूला सकल समाजा।काल प्रगति ज्यों करता जाता।समय निकट पढ़ने को आता।। चारों गुरुकुल भेजे जाएँ।दशरथ बोले शिक्षा पाएँ।। विचार रानी से सब करके।पुत्रों से बोले जी-भरके।। महत्व गुरु का उन्हें बताया।गुरुकुल शिक्षा को समझाया।। धर्म सनातन क्या है होता। जो ना जाने क्या है खोता।। पालन ब्रह्मचर्य का करने। नियमों को सब इसके वरने।। गुरु की सेवा करनी कैसे।गुरुकुल में रहना है कैसे।। बोले उनसे राजा दशरथ। पूर्ण होंगे सकल मनोरथ।। ज्ञान-गुणों के गुरु ही निधि हैं।तरने भवसागर से विधि हैं।। ©Bharat Bhushan pathak

#jaishriram  Jai Shri Ram निहाल हुई अयोध्या नगरी। सुन किलकारी त्रिभुवन सगरी।।
ठुमक चले जब चारों भाई। मुदित हुई तब तीनों माई।।
सुध-बुध खोए दशरथ राजा।कारज भूला सकल समाजा।काल प्रगति ज्यों करता जाता।समय निकट पढ़ने को
आता।।
चारों गुरुकुल भेजे जाएँ।दशरथ बोले शिक्षा पाएँ।।
विचार रानी से सब करके।पुत्रों से बोले जी-भरके।।
महत्व गुरु का उन्हें बताया।गुरुकुल शिक्षा को समझाया।।
धर्म सनातन क्या है होता। जो ना जाने क्या है खोता।।
पालन ब्रह्मचर्य का करने। नियमों को सब इसके वरने।।
गुरु की सेवा करनी कैसे।गुरुकुल में रहना है कैसे।। 
बोले उनसे राजा दशरथ। पूर्ण होंगे सकल मनोरथ।।
ज्ञान-गुणों के गुरु ही निधि हैं।तरने भवसागर से विधि हैं।।

©Bharat Bhushan pathak

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10 Love

Jai Shri Ram रसाल छंद 👇 211 111 121, 211 121 121 1 भानजभजुजल 9,10वर्ण पर यति पावन जप मन नाम,राम सुखधाम कहावत। भूषण रघुकुल राम,रूप सबको यह भावत।। मोहत सकल समाज,दृश्य मनभावन लागत। सोहत अवध कुमार,भाग्य सबके अब जागत।। ©Bharat Bhushan pathak

#jaishriram  Jai Shri Ram रसाल छंद
👇
211 111 121, 211 121 121 1
भानजभजुजल
9,10वर्ण पर यति

पावन जप मन नाम,राम सुखधाम कहावत।
भूषण रघुकुल राम,रूप सबको यह भावत।।
 मोहत सकल समाज,दृश्य मनभावन लागत।
सोहत अवध कुमार,भाग्य सबके अब जागत।।

©Bharat Bhushan pathak

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10 Love

Jai Shri Ram निहाल हुई अयोध्या नगरी। सुन किलकारी त्रिभुवन सगरी।। ठुमक चले जब चारों भाई। मुदित हुई तब तीनों माई।। सुध-बुध खोए दशरथ राजा।कारज भूला सकल समाजा।काल प्रगति ज्यों करता जाता।समय निकट पढ़ने कोआता।। चारों गुरुकुल भेजे जाएँ।दशरथ बोले शिक्षा पाएँ।। विचार रानी से सब करके।पुत्रों से बोले जी-भरके।। महत्व गुरु का उन्हें बताया।गुरुकुल शिक्षा को समझाया ©Bharat Bhushan pathak

#jaishriram  Jai Shri Ram निहाल हुई अयोध्या नगरी। सुन किलकारी त्रिभुवन सगरी।।
ठुमक चले जब चारों भाई। मुदित हुई तब तीनों माई।।
सुध-बुध खोए दशरथ राजा।कारज भूला सकल समाजा।काल प्रगति ज्यों करता जाता।समय निकट पढ़ने कोआता।।
चारों गुरुकुल भेजे जाएँ।दशरथ बोले शिक्षा पाएँ।।
विचार रानी से सब करके।पुत्रों से बोले जी-भरके।।
महत्व गुरु का उन्हें बताया।गुरुकुल शिक्षा को समझाया

©Bharat Bhushan pathak

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18 Love

खेल में राजनीति के,मानुष है लाचार। घर-घर घूमें नेताजी,करने यहाँ प्रचार।।१ वोट माँगना धर्म है,कहते हैं वो आज। हाल कभी पूछा नहीं,माँग रहे हैं ताज।।२ कुर्सी की माया बड़ी,भिड़ते नेता रोज। खूब प्रेम से थी पढ़ी,करने कुर्सी खोज।।३ नेता में गुण चाहिए,करने जग कल्याण। अपना नहीं विचारिए,रखना सबका ध्यान।।४ भारत भूषण पाठक"देवांश" ©Bharat Bhushan pathak

#politicalsatire  खेल में राजनीति के,मानुष है लाचार।
घर-घर घूमें नेताजी,करने यहाँ प्रचार।।१
वोट माँगना धर्म है,कहते हैं वो आज।
हाल कभी पूछा नहीं,माँग रहे हैं ताज।।२
कुर्सी की माया बड़ी,भिड़ते नेता रोज।
खूब प्रेम से थी पढ़ी,करने कुर्सी खोज।।३

नेता में गुण चाहिए,करने जग कल्याण।
अपना नहीं विचारिए,रखना सबका ध्यान।।४
भारत भूषण पाठक"देवांश"

©Bharat Bhushan pathak

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16 Love

White मथनी जीवन की चले, देखो कैसे यार। कहीं सुहानी धूप तो,ठंडी कहीं बयार।।१ मानव पिसता जा रहा,गेहूँ बन तैयार। तेज धार कटार नहीं,मृदु बोली हथियार।।२ तिनका-तिनका जोड़कर,विहग बनाते नीड़। मानव पर देखो यहाँ,गृह तोड़े बन भीड़।।३ सीखें खग से हम सभी,सबसे करना प्रीत। वैर भाव हम दें मिटा,अपना यह सुन्दर रीत।।४ मन को कलुषित दें खिला,भूलें बीती बात। स्वागत नए प्रभात का,विस्मित कर अब रात।।५ सब कुछ संभव हो यहाँ,यत्न करो पुरज़ोर। सफल यहाँ पर है वही,श्रम करे बिना शोर।।६ ©Bharat Bhushan pathak

#truefeelings  White मथनी जीवन की चले, देखो कैसे यार।
कहीं सुहानी धूप तो,ठंडी कहीं बयार।।१
 
मानव पिसता जा रहा,गेहूँ बन तैयार।
तेज धार कटार नहीं,मृदु बोली हथियार।।२

तिनका-तिनका जोड़कर,विहग बनाते नीड़।
मानव पर देखो यहाँ,गृह तोड़े बन भीड़।।३

सीखें खग से हम सभी,सबसे करना प्रीत।
वैर भाव हम दें मिटा,अपना यह सुन्दर रीत।।४

मन को कलुषित दें खिला,भूलें बीती बात।
स्वागत नए प्रभात का,विस्मित कर अब रात।।५

सब कुछ संभव हो यहाँ,यत्न करो पुरज़ोर।
सफल यहाँ पर है वही,श्रम करे बिना शोर।।६

©Bharat Bhushan pathak

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11 Love

White पशुवत रहने वाला मानव हमसे बहुत अच्छा था । आधुनिकता में माना हमसे बहुत कच्चा था ।। रहता था हरदम वो बहुत मस्त होकर। मान अपमान की चिन्ता से परे होकर।। अन्तर हममें उसमें इतना वो पशुवत थे रहते । और हम न जाने क्या-क्या हैं स्वांग रचाते।। खुद को खुद से ही हैं अच्छा बतलाते ।। वो बेचारा था कुछ भी खा जाता । और हमको छप्पन भोग भी न भाता।। कल मानव था झुंड में रहता । आज मानव मानव से डरता ।। कल मिलते थे इन्सान । आज तो बस चहुंओर दरसते पाषाण।। ©Bharat Bhushan pathak

#truefeelings  White पशुवत रहने वाला मानव हमसे बहुत अच्छा था ।
 आधुनिकता में माना हमसे बहुत कच्चा था ।।                       रहता था हरदम वो बहुत मस्त  होकर। 
मान अपमान की चिन्ता से परे होकर।।
अन्तर हममें उसमें  इतना वो पशुवत थे रहते ।
और हम न जाने क्या-क्या हैं स्वांग रचाते।।
खुद को खुद से ही हैं अच्छा बतलाते ।।
वो बेचारा था कुछ भी खा जाता ।
और हमको छप्पन भोग भी न भाता।।
कल मानव था झुंड में रहता ।
आज मानव मानव से डरता ।।
कल मिलते थे इन्सान ।
आज तो बस चहुंओर दरसते पाषाण।।

©Bharat Bhushan pathak

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14 Love

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