क्या बताऊं के क्या गम है
क्यू मेरे ख़्वाब टूट कर बिखरते जाते हैं
कैसा अजाब है मुझ पर
मेरे लगाए हुए फूल सुख जाते हैं
एक जंगल है यादों की, बीते लम्हों की
जिनमें कहीं गूंजती है चीखें दफ़न ख्वाहिशों की
ख़ुद को दिलासा देते हैं समझाते हैं एक वक्त बाद सब ठीक होगा
और फ़िर वक्त के साथ ख्वाहिशों के कब्र बढ़ते जाते हैं
अब तो आदत सी हो गई है इस वीराने से,
शायद फूल सूखते ही हैं यहाँ,
शायद ख़्वाब टूटते ही हैं यहाँ,
और शायद हम ज़िंदा भी,
इन्हीं टुकड़ों से रहते हैं यहाँ।
©Nikhil Kumar
#yun_hi sad shayri
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