ख़ामोशी को समझना सीख लो, खामोशियों को समझना सीख लीजिए जनाब
अक्सर खामोशियां ही लंबी दास्तां सुना जाती है
हर राज दफन होते हैं जो, चुपके से उन्हें बताती है
गर कल्पना से परे भी हो कुछ, ये खामोशी कह जाती हैं
अतीत में गुजरे लम्हों के एहसास बयां कर जाती है
कभी-कभी ये खामोशी कठिन सवाल बन जाती है
कभी-कभी ये चुपके से हर प्रश्न का जवाब लाती है
कभी-कभी ये खामोशी गहरे जख्म दिलाती है
कभी-कभी यह चुपके से दर्द की दवा लगाती है
कभी-कभी यह हमें तन्हा कर रुलाती है
कभी-कभी ये चुपके से एक संगीत भी गाती है
कभी-कभी ये खामोशी हमें बड़ा तड़पाती है
कभी-कभी ये चुपके से एक सुकून दे जाती है
कभी-कभी ये खामोशी दो दिलों को भी मिलाती है
कभी-कभी ये चुपके से उन्हें जुदा कर जाती है
कभी-कभी ये खामोशी जीवन का राग सिखाती है
कभी-कभी ये अपने संग कई रंग मौत के लाती है
कभी-कभी लगता है, ये हमें पास बुलाती है
कभी-कभी ये चुपके से दूर कहीं छिप जाती है
कभी-कभी ये खामोशी दिल का दस्तूर बताती है
कभी-कभी ये चुपके से प्रीत की रीत निभाती है
ये खामोशी हमें कभी नजर कहीं न आती है
पर दिल कहता है चुपके से छू कर मुझको ये जाती है
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